Delhi High Court : दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि पेनेट्रेटिव यौन हमले के मामलों में महिलाओं को भी आरोपी बनाया जा सकता है। यह फैसला पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) से जुड़े एक मामले में दिया गया है, जिसे सुंदरी बनाम दिल्ली सरकार के नाम से जाना जा रहा है। इस मामले में जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत ‘पेनेट्रेटिव यौन हमला’ और ‘गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला’ के मामले में पुरुष और महिला, दोनों को आरोपी बनाया जा सकता है।
पॉक्सो एक्ट और ‘he’ शब्द की व्याख्या
इस मामले में, कोर्ट का ध्यान पॉक्सो एक्ट की धारा 3 में लिखे गए ‘he’ शब्द पर केंद्रित था। जस्टिस भंभानी ने कहा कि ‘he’ का मतलब केवल पुरुष से नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षित रखना है, चाहे वह अपराध पुरुष ने किया हो या महिला ने। इसलिए, इस एक्ट के तहत आरोपी के रूप में महिलाओं को भी शामिल किया जा सकता है।
पूरा मामला
इस फैसले का आधार 2018 का एक मामला है जिसमें दिल्ली की रहने वाली एक महिला पर एक बच्चे के साथ यौन हिंसा करने का आरोप लगाया गया था। ट्रायल कोर्ट ने मार्च 2024 में महिला पर आरोप तय किए थे, जिसे महिला ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। महिला का तर्क था कि पॉक्सो एक्ट की धारा 3 और 5 के तहत उसे आरोपी नहीं बनाया जा सकता क्योंकि इनमें ‘he’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जो कि केवल पुरुषों के लिए होना चाहिए। लेकिन हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि इन धाराओं में ‘he’ का मतलब केवल पुरुष नहीं, बल्कि कोई भी व्यक्ति हो सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष।
पेनेट्रेटिव असॉल्ट में महिला आरोपी कैसे?
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, बच्चों के प्राइवेट पार्ट में किसी भी वस्तु का प्रवेश यौन अपराध माना जाएगा। इसलिए यह कहना गलत है कि यौन अपराध केवल लिंग के प्रवेश तक ही सीमित हैं। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 3(a), 3(b), 3(c), और 3(d) में ‘he’ शब्द का उपयोग इस तरह नहीं किया जाना चाहिए कि अपराध केवल पुरुषों तक सीमित रह जाए।