UP News : सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने से इनकार करने वाले पहले के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा है कि एक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा केवल इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता कि उसे राज्य ने स्थापित किया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संवैधानिक पीठ ने बहुमत से यह निर्णय सुनाया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह जरूरी है कि यह देखा जाए कि असल में उस संस्थान की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका विचार था। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई थी, और इसलिए वह संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है।
अब इस नए निर्णय के आधार पर तीन जजों की एक बेंच यह तय करेगी कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा किस तरीके से दिया जा सकता है। यह फैसला 7 जजों की पीठ ने सुनाया, जिसमें चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा एक पक्ष में थे जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का अलग मत था।
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की स्थापना 24 मई 1920 को हुई थी। इसकी शुरुआत 1877 में सर सैयद अहमद खान द्वारा की गई मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज से हुई थी, जिसे उन्होंने मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा देने के लिए स्थापित किया था। यही कॉलेज 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में तब्दील हो गया।
यह विश्वविद्यालय स्वतंत्रता के बाद देश के चार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक था। सर सैयद अहमद खान पर 1857 की क्रांति का गहरा असर पड़ा, और उन्होंने यह तय किया कि आधुनिक शिक्षा से ही अंग्रेजों को सही जवाब दिया जा सकता है। 1870 में इंग्लैंड जाकर उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों का दौरा किया और भारत में आधुनिक शिक्षा को फैलाने का संकल्प लिया।
भारत लौटकर उन्होंने अलीगढ़ में सात छात्रों के साथ एक मदरसा शुरू किया, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए 1877 में मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज बना, जो बाद में 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया और आज एक प्रमुख शिक्षण संस्थान के रूप में प्रसिद्ध है।