Hamirpur : हमीरपुर के राठ कस्बे में एक अनूठी शादी देखने को मिली, जहां दूल्हा अपनी दुल्हन को बैलगाड़ी से विदा कराकर घर ले गया। बाराती और घराती सभी ने इस कदम की सराहना की और पूरे रास्ते दूल्हा-दुल्हन पर फूल बरसाए। यह अनोखी विदाई चरखारी रोड निवासी दूल्हे विवेक उर्फ राजा द्विवेदी ने कराई। दरअसल, विवेक के पिता राजीव उर्फ राजू द्विवेदी की इच्छा थी कि उनके बेटे की विदाई बैलगाड़ी से हो।
पिता की इस इच्छा का सम्मान करते हुए विवेक ने महोबा से अपनी पत्नी रोहिणी को बैलगाड़ी में विदा कराया और लगभग 50 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर अपने घर पहुंचे। विवेक ने इस यात्रा को अविस्मरणीय बताते हुए कहा कि उन्होंने रास्ते में जो अनुभव किया, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। राजीव द्विवेदी ने अपने बेटे विवेक की शादी महोबा जिले के सूपा गांव निवासी राकेश शुक्ला की बेटी रोहिणी से तय की थी।
सोमवार को बारात गई और कन्या पक्ष ने कस्बे के एक पैलेस में शादी की रस्में पूरी कराईं। जब विदाई का समय आया, तो विवेक ने अचानक बैलगाड़ी की मांग कर सभी को चौंका दिया। पहले तो लोग अचंभित हुए, लेकिन जब विवेक ने बताया कि यह उनके पिता की इच्छा है, तो सभी ने इस फैसले का स्वागत किया। तुरंत बैलगाड़ी की व्यवस्था की गई और उसे कार की तरह सजाया गया।
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इसके बाद, दुल्हन को बैलगाड़ी में बिठाया गया और खुद दूल्हे ने बैल हांकना शुरू कर दिया। पूरे कस्बे में ही नहीं, बल्कि जहां-जहां से बैलगाड़ी गुजरी, वहां देखने वालों की भीड़ जमा हो गई। जब विवेक अपनी दुल्हन को लेकर घर पहुंचे, तो वहां भी जोरदार स्वागत किया गया। इस अनोखी विदाई ने आधुनिकता की चकाचौंध में खोए लोगों को अपनी परंपराओं से जोड़ा।
दूल्हे के पिता ने यह कदम उठाकर समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया कि परंपराएं आज भी प्रासंगिक हैं। विवाह में शामिल हुए लोगों ने कहा कि 21वीं सदी में इस तरह की विदाई देखकर मन प्रफुल्लित हो गया। महोबा से आए मेहमानों ने विवेक के इस निर्णय की सराहना की और इसे परंपराओं को जीवंत बनाए रखने की एक बेहतरीन मिसाल बताया।
दूल्हे विवेक की संपत्ति करोड़ों रुपये की है, जबकि दुल्हन रोहिणी बीटीसी की पढ़ाई कर रही है। इसके बावजूद, उन्होंने बैलगाड़ी से विदाई कराने में कोई संकोच नहीं किया। विवेक ने बताया कि पिता की इच्छा पूरी करने के बहाने उन्हें अपनी परंपराओं को समझने का मौका मिला, जिससे उन्हें बेहद खुशी हुई। वहीं, जब ससुराल पहुंचने पर रोहिणी का फूलों से स्वागत किया गया, तो उसकी आंखें भर आईं। इस विवाह ने यह साबित कर दिया कि आधुनिकता के दौर में भी परंपराओं का सम्मान किया जा सकता है।