Ayodhya : राम मंदिर, अयोध्या में हाल ही में नए पुजारियों की ड्यूटी को लेकर कुछ सख्त नियम लागू किए गए हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण नियम था, पुजारियों के लिए एंड्रॉयड फोन के उपयोग पर रोक। हालांकि, यह साफ नहीं हो पाया है कि आईफोन पर यह प्रतिबंध लागू किया जाएगा या नहीं। इस खबर के बाद लोगों के बीच यह सवाल उठने लगा कि आखिर एंड्रॉयड फोन पर ही क्यों प्रतिबंध लगाया गया, जबकि आईफोन को इस प्रतिबंध से मुक्त क्यों रखा गया।
इस सवाल (Ayodhya) का जवाब तकनीकी दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करते हैं। आईफोन और एंड्रॉयड फोन में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं, जिनके कारण एंड्रॉयड फोन को आईफोन के मुकाबले अधिक खतरे का सामना करना पड़ता है।
1.सिस्टम की सुरक्षा
आईफोन (iOS) एक क्लोज सिस्टम है, जिसका मतलब है कि आईफोन में केवल एपल के ऐप स्टोर से ही एप्स डाउनलोड किए जा सकते हैं। एपल एप्स की सख्त जांच करता है, जिससे मालवेयर और वायरस का खतरा काफी कम हो जाता है। एपल के ऐप स्टोर पर केवल वही एप्स उपलब्ध होते हैं जो एपल के मानकों पर खरे उतरते हैं। इसके अलावा, एपल लगातार अपने डिवाइस को सिक्योरिटी अपडेट्स और पैच उपलब्ध कराता है, जिससे पुराने आईफोन भी सुरक्षित रहते हैं।
वहीं एंड्रॉयड (Ayodhya) एक ओपन-सोर्स सिस्टम है, जहां उपयोगकर्ता थर्ड-पार्टी एप स्टोर्स से एप्स डाउनलोड करने की आजादी रखते हैं। यह आज़ादी एंड्रॉयड उपयोगकर्ताओं के लिए एक बड़ी सुविधा हो सकती है, लेकिन इसके साथ ही यह खतरे भी बढ़ाता है। ओपन-सोर्स होने के कारण एंड्रॉयड डिवाइस पर मालवेयर और वायरस के हमलों का खतरा ज्यादा होता है। उपयोगकर्ता अगर सतर्क न हो, तो थर्ड-पार्टी एप्स से डिवाइस में मालवेयर या वायरस का प्रवेश हो सकता है।
2. सॉफ्टवेयर अपडेट्स
आईफोन (iOS) पर सॉफ्टवेयर अपडेट्स नियमित और लंबे समय तक मिलते हैं। एपल अपने सभी डिवाइस के लिए समान सुरक्षा अपडेट्स जारी करता है, जिससे पुराने आईफोन भी लेटेस्ट सिक्योरिटी फीचर्स का उपयोग कर सकते हैं। इससे आईफोन के उपयोगकर्ताओं का डिवाइस लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।
एंड्रॉयड में सॉफ्टवेयर अपडेट्स डिवाइस निर्माता (जैसे सैमसंग, शाओमी, वनप्लस) पर निर्भर करते हैं। इसके कारण कई बार पुराने एंड्रॉयड फोन को अपडेट्स नहीं मिल पाते, जिससे सिक्योरिटी रिस्क बढ़ जाते हैं। इसके अलावा, कुछ निर्माता अपने फोन के लिए कम समय तक सपोर्ट देते हैं, जो उपयोगकर्ताओं को समस्याओं में डाल सकता है।
3. डेटा एन्क्रिप्शन और प्राइवेसी
आईफोन (iOS) में डिफॉल्ट रूप से डेटा एन्क्रिप्शन होता है। एपल ने गोपनीयता और डेटा सुरक्षा को प्राथमिकता दी है और कई फीचर्स पेश किए हैं, जैसे एप ट्रैकिंग ट्रांसपेरेंसी, जो उपयोगकर्ताओं को यह चुनने का विकल्प देता है कि कौन सी कंपनियां उनका डेटा ट्रैक कर सकती हैं। एपल के लिए प्राइवेसी हमेशा एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता रही है।
वहीं एंड्रॉयड भी डेटा एन्क्रिप्शन प्रदान करता है, लेकिन यह फोन निर्माता और एंड्रॉयड वर्जन पर निर्भर करता है। गूगल के डेटा कलेक्शन की प्रकृति के कारण, एंड्रॉयड उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता पर सवाल उठते रहते हैं। एंड्रॉयड की सुरक्षा और गोपनीयता की नीतियां फोन के निर्माता पर भी निर्भर करती हैं, जो एक कमजोर कड़ी बन सकती हैं।
4. एप्स और स्टोर की सुरक्षा
आईफोन (iOS) पर एप्स का सख्त मॉडरेशन होता है। एपल एप्स को लेकर बहुत सावधान रहता है, और संदिग्ध एप्स को जल्दी हटा दिया जाता है। इसके कारण, एप स्टोर पर मिलने वाली एप्स अधिक सुरक्षित मानी जाती हैं।
एंड्रॉयड पर एप्स की संख्या ज्यादा है, लेकिन कई बार गूगल प्ले स्टोर पर फर्जी या हानिकारक एप्स की मौजूदगी की खबरें आती रहती हैं। एंड्रॉयड के ओपन-सोर्स सिस्टम के कारण, यह जोखिम बढ़ जाता है क्योंकि उपयोगकर्ता बिना सख्त जांच के एप्स डाउनलोड कर सकते हैं।
5. मालवेयर और साइबर अटैक का खतरा
आईफोन (iOS) में मालवेयर और साइबर अटैक का खतरा कम होता है, क्योंकि यह एक बंद सिस्टम है। एपल अपने ऑपरेटिंग सिस्टम की सुरक्षा पर बहुत ध्यान देता है, जिससे इस पर हमला करने की संभावना कम रहती है।
एंड्रॉयड (Ayodhya) का ओपन-सोर्स सिस्टम और थर्ड-पार्टी एप्स को इंस्टॉल करने की अनुमति साइबर अटैक और मालवेयर का खतरा बढ़ाती है। एंड्रॉयड डिवाइस को अक्सर हैकर्स और साइबर अपराधियों का निशाना बनना पड़ता है।
ये भी पढ़ें : Noida : नोएडा के प्ले स्कूल में मिला हिडन कैमरा, मोबाइल पर देख रहा था लाइव स्ट्रीमिंग
ये भी देखें : CM Yogi ने Shivpal Singh Yadav पर कसा तंज, ‘जनता ने कहा सफाचट…’