Law and Dharma: भारत में संत और धर्मगुरु समाज को दिशा देने वाले माने जाते हैं। लेकिन जब यही संत विवादित और स्त्री-विरोधी बयान दें, तो सवाल उठते हैं—क्या ये बाबा कानून को नहीं जानते, या जानबूझकर नहीं मानते?
हाल ही में अनिरुद्धाचार्य महाराज और प्रेमानंद महाराज के बयान सामने आए, जिनमें लड़कियों के चरित्र और विवाह से जुड़ी बातें कहकर आलोचना और कानूनी बहस को जन्म दिया।
अनिरुद्धाचार्य महाराज का बयान
कुछ दिनों पहले अनिरुद्धाचार्य महाराज का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि: “अगर लड़कियां संस्कारों का पालन करें, तो छेड़खानी जैसी घटनाएं नहीं होंगी।”
इस बयान को पीड़िता को ही दोषी ठहराने की तरह देखा गया, जो भारतीय दंड संहिता (IPC) और संविधान के तहत लैंगिक समानता और गरिमा के खिलाफ है।
अनिरुद्धाचार्य महाराज का विवाह पर विवादित बयान
अनिरुद्धाचार्य महाराज का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वे कहते हैं: “लड़कियों की शादी 14 साल की उम्र में हो जानी चाहिए। अगर वो 25 की हो गई तो वो बर्बाद हो जाएगी।”
यह बयान भारतीय कानून और बाल विवाह निषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act, 2006) का खुला उल्लंघन है। भारत में लड़कियों की वैधानिक शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़कों की 21 वर्ष निर्धारित की गई है। 14 वर्ष की उम्र में शादी करवाना बाल विवाह के दायरे में आता है और दंडनीय अपराध है।
प्रेमानंद महाराज का विवादित बयान
अनिरुद्धाचार्य के बाद प्रेमानंद महाराज ने भी एक कार्यक्रम में कहा: “आजकल की लड़कियों और लड़कों का चरित्र पवित्र नहीं है। जो चार पुरुषों से मिल चुकी हो, वो सच्ची बहू नहीं बन सकती, और जो चार लड़कियों से मिल चुका हो, वो सच्चा पति नहीं बन सकता।”
उन्होंने लिव-इन रिलेशन को “गंदगी का खजाना” कहा और युवाओं की जीवनशैली को भारतीय संस्कृति के खिलाफ ठहराया।
कानूनी नजरिया, क्या ये बयान अपराध हैं?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है। वहीं, महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणी करना आईटी एक्ट और IPC की धाराओं के तहत दंडनीय अपराध है।
आईपीसी की धारा 354A के तहत यौन उत्पीड़न या महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले बयान आपराधिक कृत्य हैं।
आईटी एक्ट की धारा 66A, ऑनलाइन आपत्तिजनक कंटेंट और वीडियो को साझा करने पर कार्रवाई की बात कहती है।
क्या धर्मगुरु संविधान से ऊपर हैं?
इन बयानों के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
“क्या बाबा खुद को संविधान से ऊपर समझते हैं?”
“अगर कोई आम व्यक्ति ऐसा कहे तो FIR हो जाती है, लेकिन जब बाबा कहते हैं तो कोई सवाल नहीं करता?”
वास्तव में, भारत धर्मनिरपेक्ष और कानून-प्रधान राष्ट्र है। किसी भी धार्मिक नेता को ऐसा अधिकार नहीं है कि वह कानून का उल्लंघन करे या सामाजिक नफरत फैलाए।
सोशल मीडिया पर नाराजगी
इन दोनों संतों के बयान जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुए, लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। कई यूज़र्स ने सवाल किया कि, “क्या ये बाबा खुद को संविधान से ऊपर समझते हैं?”
कुछ ने यह भी कहा कि ऐसे बयानों से युवाओं की स्वतंत्रता और महिलाओं की गरिमा पर हमला होता है।
धर्म और कानून के बीच संतुलन जरूरी
धार्मिक आज़ादी भारत का मूल अधिकार है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कोई भी धार्मिक मंच से लैंगिक भेदभाव या सामाजिक नफरत फैलाए। धर्मगुरुओं का कर्तव्य है कि वे संविधान की मर्यादा को समझें और समाज में समानता और सद्भाव का संदेश दें।
न्याय के दायरे में रहें अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद महाराज जैसे धर्मगुरुओं के बयान यह दिखाते हैं कि धार्मिक प्रभाव रखने वाले लोग यदि संवैधानिक मर्यादाओं को नहीं मानते, तो समाज को गलत दिशा में ले जा सकते हैं।
जरूरत इस बात की है कि बाबा भी समझें—भारत एक लोकतांत्रिक, कानून-प्रधान राष्ट्र है, जहाँ किसी की भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे के सम्मान को ठेस पहुंचाने की छूट नहीं देती।
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