हमास और इजरायल के बीच यूद्ध का आज 13वां दिन है, जानकारी के अनुसार, बीते मंगलवार की रात को गाजा पट्टी के अल अहली अस्पताल पर हमला हुआ था, जिसमें 500 से अधिक बेगुनाहों की जान चली गई. आपको बता दें, पहले इजरायल और हमास दोनों एक दुसरे को हमले के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे, लेकिन बाद में इजरायली रक्षा सेना ने दावा किया कि, हमले के पीछे इस्लामिक जिहाद संगठन का हाथ है. IDF ने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए एक वीडियो जारी किया है, और कहा है कि, इस्लामिक जिहाद ने रॉकेट दागा था जो की ‘लॉन्चिंग’ के वक्त मिसफायर हो गया और अस्पताल पर जा गिरा था.
जानकारी के मुताबिक़, वीडियो जारी कर इजरायल ने साफ किया किया है कि, इसमें उसका हाथ नहीं है. आपको बता दें, अल अहली अस्पताल में सैकड़ों लोगों का इलाज चल रहा था और बड़ी संख्या में मेडिकल स्टाफ भी काम कर रहे थे, लोगों ने भी यहां शरण ली हुई थी. इस दर्दनाक घटना को लेकर सभी देश इसकी निंदा कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने भी हमले की कड़ी निंदा करते हुए, मरने वालों और घायलों के लिए दुख जताया है, साथ ही उन्होंने युद्ध के दौरान अस्पताल और मेडिकल स्टाफ के अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत सुरक्षित होने की खबर दी है.
‘अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून’ का उल्लंघन
आईए आपको बताते हैं, युद्धकाल में अस्पतालों और स्कूलों को लेकर संयुक्त राष्ट्र का चार्टर या अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून क्या है? जानकारी के मुताबिक़, ‘अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून’ युद्ध के दौरान उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है जो युद्ध में शामिल नहीं होते हैं, अगर fir भी इन्हें युद्ध में निशाना बनाया जाता है तो, यह ‘अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून’ का उल्लंघन कहलाता है. युद्ध के दौरान नागरिकों, बस्तियों और मानवीय कार्यकर्ताओं पर हमले करना, या संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, यौन हिंसा, गैरकानूनी निर्वासन को ‘अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून’ के तहत अपराध माना जाता है, स्कूलों, अस्पतालों पर किसी भी तरह से किया गया हमला संयुक्त राष्ट्र द्वारा चिन्हित गंभीर उल्लंघनों में से एक माना जाता है.
UN के मुताबिक वॉर क्राइम की श्रेणी में गिना जाता है
ये कानून युद्ध के दौरान आम नागरिकों और खासतौर पर बच्चों को सुरक्षा प्रदान करता है. UN के मुताबिक, जब दो देशों या दो गुटों के बीच युद्ध होता है, और उस दौरान अगर इस तरह के हमले किए जाते हैं, तो उसे अपराध या वॉर क्राइम की श्रेणी में गिना जाता है, जो की जेनेवा कन्वेंशन और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का सीधा-सीधा उल्लंघन है. नियम के अनुसार इसे ‘लॉ ऑफ वॉर’ कहा जाता है और ये नियम युद्ध के दौरान सशस्त्र संघर्ष के प्रभाव को सीमित करता है.
‘चौथा जेनेवा कन्वेंशन’ साल 1949 में लागु हुआ
जानकारी के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून युद्ध के दौरान ‘जेनेवा कन्वेंशन’ के द्वारा निर्धारित किया जाता है, और इस कानून को इजरायल भी मानता है. ‘चौथा जेनेवा कन्वेंशन’ साल 1949 में लोगों को रक्षा प्रदान करने वाला पहला कन्वेंशन था, इस कानून का आर्टिकल 14 और आर्टिकल 18 युद्ध के दौरान अस्पतालों की सुरक्षा की बात करता हैं. बता दें, आर्टिकल 14 के अनुसार, यौद्ध के दौरान बीमार, घायल और गर्भवती महिलाओं के लिए अस्पताल और सेफ्टी जोन बनाए जाने चाहिए, और वहीं, आर्टिकल-18 अस्पतालों, मरीजों और कर्मचारियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है.
मुकदमें की जिम्मेदारी इंटरनेशनल क्रीमिनल कोर्ट की होती है
जानकारी के अनुसार, जेनेवा कन्वेंशन के अंतर्गत ‘एडिशनल प्रोटोकॉल वन’ के अनुसार, मेडिकल यूनिट्स को युद्ध के दौरान पूरे टाइम सुरक्षा दी जानी चाहिए और यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए की युद्ध के दौरान कोई भी किसी हमले का शिकार न बनें. युद्ध के दौरान अस्पतालों, सांस्कृतिक इमारतों पर किए गए हमले ‘जेनेवा कन्वेंशन’ का उल्लंघन किया जाता है तो ऐसे मामलों की जांच और मुकदमा चलाए जाने की जिम्मेदारी इंटरनेशनल क्रीमिनल कोर्ट के पास होती है, जानकरी के अनुसार, रोम स्टेच्यू एक संधि है, जिसके अंतर्गत ‘इंटरनेशनल क्रीमिनल कोर्ट’ की स्थापना हुई थी.