UP Politics : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों से मिले बूस्टर डोज का लाभ उठाने की योजना बनाई है। यह रणनीति खासकर उत्तर प्रदेश के आगामी उपचुनावों में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे को धार देने पर केंद्रित है। भाजपा का केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व यूपी की नौ विधानसभा सीटों के लिए नवंबर में होने वाले उपचुनाव में इन मुद्दों के माध्यम से जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश करेगा।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजे
हरियाणा में भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाकर राजनीतिक समीकरणों को नई दिशा दी है। 2014 और 2019 के मुकाबले ज्यादा सीटें हासिल कर भाजपा ने अपने विरोधियों के सारे कयासों को झुठला दिया। वहीं, जम्मू-कश्मीर में भले ही भाजपा सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाई, लेकिन वहां मिले सबसे ज्यादा वोटों ने पार्टी में नई उम्मीद जगा दी है। इन चुनावी परिणामों ने भाजपा को यह विश्वास दिलाया है कि हिंदुत्व के फार्मूले से वह जातीय समीकरणों को साधने में सफल हो सकती है।
कांग्रेस और सपा की प्रतिक्रिया
कांग्रेस ने हाल ही में लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा की हार को राष्ट्रीय राजनीति से विदाई के तौर पर प्रचारित किया था, लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजों ने इस दावे को एक तरह से खारिज कर दिया है। इसके चलते, भाजपा अब यूपी के उपचुनाव में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडों को और अधिक धार देने की योजना बना रही है। इसके लिए भाजपा ने बंटोगे तो कटोगे के नारे का सहारा लिया, जिसने पिछले चुनावों में उसके लिए सकारात्मक परिणाम दिए थे।
जातियों का लामबंद होना
भाजपा ने हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव के दौरान बंटोगे तो कटोगे का नारा दिया, जिसका सकारात्मक असर देखने को मिला। इस नारे के माध्यम से भाजपा (UP Politics) ने कांग्रेस के जाट, दलित, और यादव वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफलता पाई। गैर-जाट और दलितों में भी गैर-जाटव मतदाताओं को हिंदुत्व के नाम पर लामबंद किया गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में हिंदू मतदाता भाजपा के पक्ष में गोलबंद हुए हैं, जो कि जातीय गोलबंदी पर भारी पड़ता दिख रहा है।
यूपी में समीकरण को मजबूत करना
भाजपा अब यूपी (UP Politics) में 2014 से लेकर 2022 तक के सफल समीकरणों को फिर से मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है। यदि यह रणनीति सफल होती है, तो 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा एक नई रणनीति तैयार कर सकेगी। भाजपा की यह पहल न केवल उपचुनाव में उसकी स्थिति को मजबूत करेगी, बल्कि उसके भविष्य के चुनावी दावों की दिशा भी तय करेगी।
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