Supreme Court : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता पर अपना फैसला सुनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि धारा 6A उन व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करती है जो संवैधानिक या ठोस कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं।
धारा 6A
धारा 6A को असम में अवैध प्रवास के मुद्दे को संबोधित करने के लिए असम समझौते के हिस्से के रूप में 1985 में पेश किया गया था। केंद्र सरकार ने अदालत में तर्क दिया था कि देश में अवैध प्रवासियों की सही संख्या को ट्रैक करना संभव नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु
गुरुवार को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 6A उन व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करती है जो जुलाई 1949 के बाद प्रवास कर गए लेकिन नागरिकता के लिए आवेदन नहीं किया। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि धारा 6ए विशेष रूप से उन लोगों को नागरिकता प्रदान करती है जो 1 जनवरी, 1966 से पहले पलायन कर गए थे, जो उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 के दायरे से बाहर रखते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने 4:1 बहुमत के निर्णय में नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने असहमति जताते हुए कहा कि यह प्रावधान इसके प्रभाव के आधार पर संभावित रूप से असंवैधानिक है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत, एम.एम. सुंदरेश और मनोज मिश्रा के साथ मिलकर बहुमत की राय बनाई, जबकि न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति व्यक्त की।
न्यायालय का तर्क
न्यायालय ने तर्क दिया कि असम पर अवैध प्रवास का प्रभाव पश्चिम बंगाल की तुलना में अधिक है, जिसमें असम में 40 लाख प्रवासी और पश्चिम बंगाल में 56 लाख प्रवासी शामिल हैं। इसने असम को अलग से मानने को उचित ठहराया, यह तर्क देते हुए कि 1971 की कटऑफ तिथि उचित आधार पर आधारित थी, 1971 के ऑपरेशन सर्चलाइट के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से पलायन में वृद्धि को देखते हुए।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 6ए(3) का उद्देश्य दीर्घकालिक समाधान प्रदान करना था। इसने असम समझौते को स्थानीय निवासियों के अधिकारों को कम किए बिना उनकी चिंताओं को दूर करने के प्रयास के रूप में देखा। बांग्लादेश और असम समझौतों के संदर्भ में पेश किए गए प्रावधान को भारत की व्यापक नीति के आलोक में समझा जाना चाहिए। धारा 6ए को हटाने से वास्तविक मुद्दे नज़रअंदाज़ हो जाएंगे।
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