दादरी विधानसभा के भीतर आने वाला बादलपुर गांव, उत्तर प्रदेश की सत्ता पर 4 बार राज करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का पैतृक गांव हैं। बादलपुर गांव एक समय में चर्चाओ का विषय रहता था। क्योकिं बहन जी जब सत्ता पर थी तो इस गांव का विकास बहुत तेजी में हुआ था जिसकी वजह से यह गांव दिन पे दिन एक शहर में तबदील होते दिख रहा था। मगर वक्त की करवट के साथ यह सब कुछ बदल गया बादलपुर स्मपूर्ण रूप से बदहाल होता चला गया।
मायावती ने बदली बादलपुर की तस्वीर
सत्ता पर काबीज रहते समय बहन जी ने यहां बुहत निर्माण कराया विश्वविघालय ,स्कूल ,कॉलेज ,हैलीपैड ,पशु चिकित्सालय, अस्पताल आदि लेकिन वक्त के साथ आज यह सब एक ढांचे में तब्दील होता दिख रहा हैं।
वक्त के साथ बत्तर होता गया बादलपुर
बादलपुर मे प्रवेश करते 10 कदम की दूरी पर ही हमे एक पशु चिकित्सालय मिलता है मगर वहां न तो कोई डॉक्टर दिखता हैं और न हीं वहां का कभी गेट खुलता है ग्रामीणों का कहना है कि जब से यह इमारत खड़ी हुई है, तबसे ऐसी ही यहां के हालात हैं। आज तक एक भी पशु का इलाज नहीं हुआ यह स्तिथी केवल एक पशु चिकित्सालय की नहीं बल्कि वहां आम जनता के लिए बने अस्पतालो की भी हैं जहां डॉक्टर मरीज को ढंग से देखने तक नहीं आते हैं गली के बाहर सीवर का पानी निरन्तर बह रहा है। जिसके चलते वहा हर एक बच्चा बिमार रहता है और लोग परेशान हैं लेकिन आज के वक्त बादलपुर के हालातो की कोई भी सुध नहीं ले रहा हैं ।
बहन से क्यों नाराज है ग्रामीण
लोगों से बात करने पर पता चलता हैं की वो बहन जी से भी काफी नाखुश है जिसकी असल वजह बहन जी सत्ता से हटने के बाद गांव की ओर झाकने तक न आना साथ ही अपने कार्यकाल यानि वर्ष 2007 में जमीनो का अधिग्रहण करना । विकास के नाम पर वहां रहने वाले किसानो से उनकी जमीन ले लेना मगर न तो विकास करना और न जमीन किसानो को लौटाना जिसके चलते बादलपुर गांव का किसान आज मजदूरी करने को मजबूर हैं ।
लोकसभा चुनाव को लेकर क्या सोचते ग्रामीण
2024 नजदीक है जिसके चलते बादलपुर में बसपा पार्टी के प्रति लोगो के जहन में क्या है यह जानने के लिए हम वहां पहुंचे थे मगर बादलुपर के लोगो से बात करने से पता चलता हैं कि मायवती के राज में तो बिजली भी बेहतर थी मगर आज 12 घंटे से ज्यादा बिजली नसीब नहीं होती वहां की जनता का कहना हैं कि राजनीतिक दल केवल अपना फायदा मुनाफा देखते हैं जनता के लिए कोई नहीं सोचता बहन जी ने भले इमराते तो खड़ी कर दी मगर वर्तमान में काबिज सराकर न तो उस विकास को आगे ले गई बल्कि जो इमारते थी वो भी खंडहर कर के रख दिया गया हैं