Rahul Gandhi Voter Adhikar Yatra: बिहार की सियासत इस समय एक बार फिर गरमा रही है। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने रविवार को सासाराम से ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की शुरुआत की। यह यात्रा 16 दिनों तक चलेगी और 20 जिलों में 1,300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। इसका समापन 1 सितंबर को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में विशाल रैली के साथ होगा।
सासाराम से शुरूआत, गया में जनसभा और रात्रि विश्राम
राहुल गांधी ने यात्रा की शुरुआत सासाराम से की, जिसे दलितों का गढ़ माना जाता है। सोमवार को दूसरे दिन यात्रा गया पहुंची, जहां राहुल ने सूर्य देव मंदिर का दर्शन किया और शाम को जनसभा को संबोधित किया। रात्रि विश्राम उन्होंने रसलपुर क्रिकेट ग्राउंड में किया। इस दौरान बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन के कई अन्य नेता भी राहुल के साथ नजर आए।
कांग्रेस की स्थिति और वोट बैंक की चुनौती
बिहार में कांग्रेस पिछले तीन दशकों से अपने दम पर सत्ता में नहीं आ पाई है। मौजूदा स्थिति यह है कि 243 सीटों वाली विधानसभा में पिछले चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 70 सीटों पर लड़ने का मौका मिला और उसमें से केवल 19 सीटें जीत पाई। जबकि गठबंधन की अगुवाई कर रही राष्ट्रीय जनता दल ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटों पर जीत हासिल की। यही कारण है कि राहुल गांधी इस यात्रा के जरिए खोए हुए जनाधार को वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं।
दलित और मुस्लिम वोटों पर नजर
बिहार में कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक दलित और मुस्लिम रहा है। इस यात्रा के जरिए राहुल और तेजस्वी की कोशिश है कि यादव और मुस्लिम वोटों के साथ दलित समुदाय को भी अपने पाले में किया जाए। राहुल गांधी ने अपने बिहार दौरों में बार-बार दलितों से जुड़ने की रणनीति अपनाई है। कुछ महीने पहले ही वे गया जिले के गहलौर गांव गए थे, जहां उन्होंने ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी के परिवार से मुलाकात की और उनके लिए घर बनवाने का वादा भी किया।
गया और आसपास का चुनावी समीकरण
गया जिला महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए बेहद अहम है। यहां की 10 विधानसभा सीटों में पिछली बार दोनों गठबंधनों को 5-5 सीटें मिली थीं। लेकिन पिछले उपचुनाव में जेडीयू ने एक सीट पर जीत दर्ज कर महागठबंधन से बढ़त ले ली। यही वजह है कि राहुल गांधी इस क्षेत्र को अपनी यात्रा का अहम पड़ाव बना रहे हैं। पासवान, धोबी और पासी बिरादरी के वोटरों पर भी कांग्रेस की नजर है।
कांग्रेस की गिरती ताकत और राहुल की कोशिशें
90 के दशक में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बिहार में करीब 25% था, जो 2015 में गिरकर 6.7% और 2020 में मामूली सुधार के साथ 9.48% तक सिमट गया। इस गिरावट को थामने के लिए राहुल ने बिहार कांग्रेस की कमान दलित नेता राजेश राम को दी है और सुशील पासी को सह-प्रभारी बनाया है। अब ‘वोटर अधिकार यात्रा’ इसी रणनीति का अगला कदम है।
क्या बदल पाएगी तस्वीर?
‘वोट चोरी’ के मुद्दे को उठाकर और वोटर लिस्ट की समीक्षा प्रक्रिया का विरोध करके कांग्रेस बिहार में अपनी पहचान दोबारा बनाना चाहती है। राहुल गांधी की यह यात्रा केवल एक चुनावी अभियान नहीं, बल्कि कांग्रेस के अस्तित्व की लड़ाई भी मानी जा रही है। अब देखने वाली बात होगी कि यह लंबी यात्रा और रैलियां बिहार की जनता को कितना प्रभावित कर पाती हैं और क्या कांग्रेस अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने में सफल हो पाती है।
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