Unnao Rape Case : उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से जुड़ी यह कहानी सिर्फ एक अपराध या अदालती फैसले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस भय, दबाव और सामाजिक बहिष्कार की सच्चाई को उजागर करती है, जिसमें एक पीड़िता ने न्याय की कीमत अपने पूरे परिवार को खोकर चुकाई। कभी खुशहाल रहा यह परिवार आज पूरी तरह बिखर चुका है। पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर से चली पुरानी दुश्मनी ने पीड़िता की जिंदगी को ऐसे अंधेरे में धकेल दिया, जहां उसके अपने भी साथ छोड़ने को मजबूर हो गए।
उन्नाव रेप कांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुलदीप सेंगर को जमानत मिलने के बाद यह मामला एक बार फिर राष्ट्रीय बहस में आ गया है। जमानत के बाद जब पीड़िता ने दिल्ली के इंडिया गेट पर विरोध दर्ज कराने की कोशिश की, तो वह पूरी तरह अकेली थी। न कोई रिश्तेदार, न कोई करीबी—सिर्फ पुलिस, जिसने उसे वहां से हटाकर धरना खत्म करा दिया। यह दृश्य अपने आप में उस डर को बयान करता है, जो आज भी पीड़िता के जीवन पर हावी है।
गांव की राजनीति से शुरू हुआ टकराव
उन्नाव के माखी गांव में पीड़िता और कुलदीप सेंगर के परिवार वर्षों से एक-दूसरे के पड़ोसी रहे हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, साल 2002 के ग्राम प्रधान चुनाव के दौरान दोनों परिवारों के बीच तनाव की नींव पड़ी। चुनावी मुकाबला धीरे-धीरे व्यक्तिगत रंजिश में बदल गया। आरोप है कि प्रभाव और दबाव का इस्तेमाल कर पीड़िता के परिवार को बार-बार निशाना बनाया गया। इसी संघर्ष के दौरान परिवार ने अपना पहला सदस्य खो दिया, जब पीड़िता के ताऊ की हत्या कर दी गई।
2017: जब जख्म और गहरे हुए
साल 2017 में यह दुश्मनी और भी खौफनाक मोड़ पर पहुंच गई। पीड़िता ने तत्कालीन विधायक पर गंभीर आरोप लगाए, जिसके बाद घटनाओं की एक ऐसी श्रृंखला शुरू हुई, जिसने पूरे देश को हिला दिया। पीड़िता के पिता को कथित तौर पर झूठे मामलों में फंसाया गया और जेल भेजा गया। कुछ ही दिनों में उनकी मौत हो गई। यह परिवार के लिए दूसरा बड़ा आघात था, जिसने उन्हें अंदर से तोड़ दिया।
सड़क हादसा या साजिश?
इसके बाद रायबरेली में हुआ एक संदिग्ध सड़क हादसा देशभर में चर्चा का विषय बना। इस हादसे में पीड़िता की चाची और मौसी की जान चली गई। चाची इस मामले में अहम गवाह थीं। खुद पीड़िता भी गंभीर रूप से घायल हुई और लंबे समय तक अस्पताल में इलाज चला। इस तरह चार मौतों ने इस परिवार को पूरी तरह उजाड़ दिया।
व्यवस्था की भूमिका पर सवाल
मामले में पुलिस और प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही। जांच के दौरान कुछ पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी और निलंबन ने यह संकेत दिया कि सत्ता के प्रभाव में व्यवस्था किस हद तक प्रभावित हो सकती है। यही कारण है कि पीड़िता का भरोसा सिस्टम पर बार-बार डगमगाया।
सुरक्षा हटने से बढ़ी चिंता
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पीड़िता और उसके परिवार को लंबे समय तक केंद्रीय सुरक्षा मिली। हालांकि, सजा सुनाए जाने के बाद इस साल मार्च में सुरक्षा हटाने का फैसला हुआ। इसके बाद पीड़िता की चिंता और भय दोनों बढ़ गए हैं। आज हालात यह हैं कि परिवार का एक सदस्य जेल में है और बाकी रिश्तेदार डर के कारण दूरी बनाए हुए हैं।
अकेली लेकिन अडिग
चार अपनों को खोने के बावजूद पीड़िता की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। यह कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उस सवाल की है कि क्या न्याय मिलने के बाद भी पीड़ित सुरक्षित रह पाते हैं? उन्नाव की यह पीड़िता आज भी उसी जवाब की तलाश में है।
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