Bihar News: बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर बड़ा बवाल मच गया है। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद जो फाइनल वोटर लिस्ट जारी की गई, उसमें 3.66 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए। अब सुप्रीम कोर्ट में इस पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतने लोगों के नाम बिना जानकारी दिए या नोटिस भेजे कैसे हटा दिए गए?
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर ने दलील दी कि लाखों लोगों को बिना बताए लिस्ट से हटा दिया गया है और उन्हें अपील करने का भी मौका नहीं मिला।
कोर्ट में क्या हुआ?
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ताओं से तीखा सवाल किया – “आप किसके लिए आवाज उठा रहे हैं? कुछ तो ऐसे लोग हैं जिन्हें फर्क ही नहीं पड़ता कि उनका नाम लिस्ट में है या नहीं। वो कोर्ट भी नहीं आएंगे। तो फिर आप ये सब किसके लिए कर रहे हैं?”
कोर्ट ने साफ किया कि वो नहीं चाहते कि ये मामला “अनियंत्रित पूछताछ” में बदल जाए।
याचिकाकर्ताओं की बात
प्रशांत भूषण ने कहा कि फाइनल लिस्ट की जांच से साफ है कि चीजें और उलझ गई हैं। बहुत सारे नाम हटाए गए हैं और लोगों को इसकी कोई सूचना नहीं दी गई।
वहीं अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि न तो नोटिस भेजे गए और न ही किसी को अपील करने का मौका मिला। वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जो जानकारी है, वह भी साफ नहीं है – जैसे कि किस उम्र के कितने लोगों के नाम हटाए गए या कितने पुरुष और महिलाओं के नाम हटे।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने इन सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि हर वोटर को जानकारी दी गई थी और सभी राजनीतिक पार्टियों को लिस्ट दी गई थी। उन्होंने कोर्ट से कहा कि याचिकाकर्ताओं से हलफनामा लिया जाए कि वे किस आधार पर ये सब कह रहे हैं।
उन्होंने कहा, “कुछ एनजीओ दिल्ली में बैठकर शोर कर रहे हैं। खुद कोई चुनाव आयोग के पास नहीं आता। पुरानी याचिका पर ही बहस कर रहे हैं।”
पटना हाईकोर्ट ट्रांसफर की मांग
इस बीच एडवोकेट अश्वीन उपाध्याय ने मांग की कि इस मामले से जुड़े सभी केस पटना हाईकोर्ट भेज दिए जाएं। वहीं सीनियर वकील विजय हंसारिया ने कहा कि कोर्ट में एक बात होती है, लेकिन बाहर जाकर ‘वोट चोरी’ का हंगामा मचाया जाता है।
वोटर लिस्ट में नाम हटने से जुड़े इस मामले में एक तरफ याचिकाकर्ता दावा कर रहे हैं कि लाखों लोगों को बिना जानकारी के लिस्ट से बाहर कर दिया गया, वहीं चुनाव आयोग कह रहा है कि सब कुछ नियमानुसार किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अभी कोई फैसला नहीं सुनाया है, लेकिन साफ कर दिया है कि वो इस मामले को बेवजह लंबा नहीं खींचना चाहता।
अब देखना होगा कि क्या इन 3.66 लाख लोगों को फिर से वोटर लिस्ट में शामिल करने का कोई रास्ता खुलेगा या नहीं।
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