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Chhath Puja 2024 : जानिए क्यों किया जाता है छठ पूजा में बांस के सूप का इस्तेमाल और क्या है इसका धार्मिक महत्व

by | Nov 4, 2024 | बड़ी खबर, मुख्य खबरें

Chhath Puja 2024 : हिंदू धर्म में छठ पूजा का विशेष स्थान है और इस पूजा में बांस से बने सूप का अत्यधिक महत्व है। बांस एक प्राकृतिक तत्व है और इसे प्रकृति का प्रतीक माना जाता है। छठ पूजा के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है, इसलिए बांस के सूप का उपयोग इस पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा है।

बांस को पवित्र और शुद्ध माना जाता है, और इसी कारण इसका प्रयोग पूजा में किया जाता है। मान्यता है कि बांस के सूप के माध्यम से सूर्य देवता को अर्घ्य देने से वे प्रसन्न होते हैं और व्रती को मनचाहा फल प्रदान करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है।

द्रिक पंचांग के अनुसार, छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। इस साल 2024 में यह तिथि 7 नवंबर को सुबह 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और 8 नवंबर को सुबह 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार उदया तिथि के अनुसार, छठ पूजा 7 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन शाम को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा और अगले दिन 8 नवंबर को सुबह का अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाएगा।

छठ पूजा के दौरान बांस से बने सूप, टोकरी, कोनी आदि का विशेष उपयोग होता है। बांस के सूप का प्रयोग सूर्य देवता की पूजा में अर्घ्य देने के लिए किया जाता है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। सूप में विभिन्न प्रकार के फल, ठेकुआ आदि रखे जाते हैं, जिन्हें व्रती महिलाएं छठ घाट पर ले जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। इसके अलावा, प्रसाद रखने के लिए भी बांस के सूप का उपयोग किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि जो भी दंपत्ति श्रद्धा और आस्था से छठ माता का पूजन करते हैं, उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। छठ पूजा के दौरान संपूर्ण परिवार के सुखी जीवन की कामना की जाती है।

इस पूजा में मुख्य रूप से तीन दिन के अनुष्ठान शामिल होते हैं – नहाय खाय, खरना और संध्या अर्घ्य। इन तीनों अनुष्ठानों में विधि-विधान का विशेष महत्व है, जिसमें बांस के सूप का उपयोग होता है। प्राचीन काल में, लोग प्राकृतिक वस्तुओं का ही प्रयोग करते थे और बांस आसानी से उपलब्ध होने के कारण इसका प्रयोग पूजा में किया जाने लगा था।

कुछ मान्यताओं के अनुसार, आदिवासी संस्कृति में बांस का विशेष महत्व होता था और इसे पूजा में उपयोग किया जाता था। सूर्य देवता को ऊर्जा और जीवन का स्रोत माना गया है और बांस, जो तेजी से बढ़ने वाला पौधा है, सूर्य देव की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।

छठ पूजा में विशेष रूप से डोम जाति द्वारा बनाए गए बांस के सूप का प्रयोग होता है। इन सूपों को बनाने में खास प्रकार की बांस की लकड़ी का उपयोग किया जाता है, जो इन्हें लंबे समय तक टिकाऊ बनाती है।

छठ पूजा के दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के समय बांस के सूप का प्रयोग किया जाता है। व्रती महिलाएं बांस से बने सूप, टोकरी या दउरा में फल, ठेकुआ आदि रखकर छठ घाट पर ले जाती हैं और सूर्यदेव की आराधना करती हैं। बांस के बने सूप या टोकरी से ही छठी मैया को भेंट दी जाती है। मान्यता है कि इस पूजा से घर में धन और संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन की परेशानियों का नाश होता है।

इस प्रकार छठ पूजा में बांस के सूप का न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक महत्व भी है। यह पूजा प्रकृति, स्वास्थ्य और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के साथ की जाती है।

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