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Satya Pal Malik: अनुच्छेद 370 की वर्षगांठ पर दुनिया से विदा हुए सत्यपाल मलिक, दिल्ली के RML अस्पताल में ली अंतिम सांस

by | Aug 5, 2025 | बड़ी खबर, मुख्य खबरें, राजनीति

Satya Pal Malik: 5 अगस्त 2019 यह तारीख भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में जानी जाती है, जब अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया और राज्य को जम्मू-कश्मीर व लद्दाख नामक दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। इस ऐतिहासिक फैसले के वक्त सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के अंतिम राज्यपाल थे। और अब संयोग देखिए कि इसी तारीख यानी 5 अगस्त 2025 को सत्यपाल मलिक ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

सत्यपाल मलिक ने अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। उनका कार्यकाल कई मायनों में ऐतिहासिक रहा क्योंकि यहीं से अनुच्छेद 370 को खत्म कर जम्मू-कश्मीर का स्वरूप ही बदल दिया गया। इसके बाद उन्हें गोवा का 18वां राज्यपाल और फिर मेघालय का 21वां राज्यपाल नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने अक्टूबर 2022 तक सेवा दी।

24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में जन्मे सत्यपाल मलिक एक जाट परिवार से थे। उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक और एलएलबी की पढ़ाई की और 1968-69 में विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष बने। यहीं से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई।

उनका पहला बड़ा राजनीतिक कार्यकाल 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के रूप में रहा। इसके बाद वह 1980 से 1989 तक दो बार राज्यसभा सांसद रहे और फिर 1989 से 1991 तक अलीगढ़ से लोकसभा सांसद रहे।

1980 में, चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल से राज्यसभा पहुंचे, लेकिन 1984 में कांग्रेस में शामिल हो गए। बोफोर्स घोटाले के बाद उन्होंने 1987 में कांग्रेस छोड़ी और वी.पी. सिंह के साथ जुड़ गए। जनता दल के टिकट पर उन्होंने 1989 में लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्र में पर्यटन और संसदीय कार्य राज्य मंत्री के रूप में सेवा दी।

2004 में भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने बागपत से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन अजित सिंह से हार गए। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें भूमि अधिग्रहण विधेयक पर बनी संसदीय समिति का प्रमुख बनाया गया, जिसमें उन्होंने कानून में कई बदलाव की सिफारिशें कीं। इसके बाद सरकार ने विधेयक को आगे नहीं बढ़ाया।

सत्यपाल मलिक कश्मीर में मिलिटेंसी शुरू होने के बाद पहले ऐसे राज्यपाल थे जो खुद एक राजनेता थे। वे केवल प्रशासक नहीं, बल्कि जमीनी राजनीति की गहरी समझ रखने वाले व्यक्ति थे। उनका जीवन राजनीतिक विचारधाराओं और सत्ता के बीच संतुलन साधते हुए बीता।

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