Uttarakhand News : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसके तहत उत्तराखंड में विचाराधीन कैदियों को तत्काल जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया है, जिन्होंने जेल में अधिकतम संभावित सजा का एक तिहाई हिस्सा काट लिया है। यह प्रावधान भारतीय नागरिक न्याय संहिता (बीसीएनएस) की धारा 479 के अंतर्गत आता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अधिक उम्र के कैदियों पर भी लागू करने का निर्देश दिया है। हालांकि, यह आदेश उन मामलों पर लागू नहीं होगा, जहां आजीवन कारावास या मृत्युदंड निर्धारित है।
इस फैसले से उत्तराखंड की जेलों, खासकर देहरादून, हल्द्वानी और हरिद्वार को काफी राहत मिलने की उम्मीद है, जहां वर्तमान में कैदियों की संख्या बहुत अधिक है। कैदियों की अत्यधिक संख्या ने जेल सुविधाओं पर भारी दबाव डाला है, जिससे कैदियों के लिए अमानवीय रहने की स्थिति पैदा हो गई है। उदाहरण के लिए, देहरादून जिला जेल की कुल क्षमता 580 कैदियों की है, लेकिन वर्तमान में 369 दोषी कैदियों के साथ 900 से अधिक विचाराधीन कैदी हैं। हल्द्वानी और हरिद्वार की जेलों में भी इसी तरह की भीड़भाड़ की समस्या व्याप्त है।
पुराने कानून में बदलाव का असर
पिछले कानून, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत विचाराधीन कैदी अपनी सजा की आधी अवधि पूरी करने के बाद ही इस लाभ का लाभ उठा सकते थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सहमति से यह फैसला लिया है कि पुराने कानून के तहत आने वाले विचाराधीन कैदियों पर भी यह नया प्रावधान लागू होगा। (Uttarakhand News) सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जेल अधीक्षकों को यह पहचान करनी होगी कि किन विचाराधीन कैदियों ने अपनी संभावित सजा का एक तिहाई हिस्सा पूरा कर लिया है, जिसके बाद उनकी जमानत याचिका जिला अदालतों में दाखिल की जाएगी।
जेल प्रशासन की तैयारियां
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में जेल प्रशासन फिलहाल पात्र विचाराधीन कैदियों की सूची तैयार कर रहा है। डीआईजी जेल दधिराम ने बताया कि सभी जेल अधीक्षकों को इसके लिए निर्देश दे दिए गए हैं और तैयार सूची के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। उत्तराखंड की जेलों पर बढ़ते बोझ और कैदियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह फैसला न्यायिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो जेल सुधार और मानवाधिकारों के संरक्षण के महत्व को रेखांकित करता है।
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