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कौन बनेगा NCP का असली किंग ? आज EC खोलेगा शरद पवार और अजित की किस्मत का पिटारा

by | Oct 6, 2023 | बड़ी खबर, राजनीति

मुंबई। अनुभवी भारतीय राजनेता शरद पवार ने अपने भतीजे अजीत पवार की हालिया कार्रवाइयों को चुनौती देते हुए चुनाव आयोग में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है। यह कदम 2 जुलाई, 2023 को शिवसेना और भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में अजित पवार के उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद लिया गया है। पवार परिवार के भीतर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अब चुनाव आयोग तक बढ़ गई है, दोनों गुट मान्यता के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

शरद पवार गुट को चुनाव आयोग का नोटिस

इससे पहले कि शरद पवार अपनी शिकायतें चुनाव आयोग के पास ले जाते, आयोग ने उनके गुट को नोटिस जारी कर पार्टी के प्रतीक और झंडे पर उनके दावे का कारण पूछा। यह नोटिस अजीत पवार के समूह द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में था, जिसमें तर्क दिया गया था कि अजीत पवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का अध्यक्ष घोषित किया जाना चाहिए और चुनाव चिह्न (आरक्षण) के प्रावधानों के तहत पार्टी का प्रतीक आवंटित किया जाना चाहिए।

शरद पवार की प्रतिक्रिया

मचे सियासी तूफान पर प्रतिक्रिया देते हुए शरद पवार ने कहा, ”हर कोई जानता है कि एनसीपी की स्थापना किसने की और यह पार्टी किसकी है. इसके बावजूद पार्टी की विरासत को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है. चाहे जो भी फैसला आए. घबराने की जरूरत नहीं है। मैंने कई बार विभिन्न प्रतीकों पर चुनाव लड़ा और जीता है।”\

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अजित पवार का रुख

इसके विपरीत, अजित पवार ने अधिक सौहार्दपूर्ण रुख अपनाते हुए कहा है कि चुनाव आयोग जो भी फैसला करेगा, वे उसे स्वीकार करेंगे। यह दृष्टिकोण एनसीपी के भीतर चल रहे विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की इच्छा को दर्शाता है। इस राजनीतिक गाथा की जड़ें नवंबर 2019 में शुरू हुईं जब शरद पवार और अजीत पवार की भाजपा के साथ सरकार बनाने की असफल कोशिश के कारण पारिवारिक विवाद गहरा गया। 2 जुलाई, 2023 को अजित पवार ने गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जिसमें 37 एनसीपी विधायकों ने भाजपा को समर्थन दिया था। इस कदम से एनसीपी के भीतर सत्ता संघर्ष और तेज हो गया।

टकराव चुनाव आयोग तक पहुंचा

5 जुलाई, 2023 को अजित पवार के गुट ने एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर अपना दावा जताते हुए चुनाव आयोग को एक याचिका सौंपी। उनके साथ सांसदों और विधायकों सहित उनके समर्थकों के 40 हलफनामे भी शामिल थे, जिन्होंने उनकी स्थिति का समर्थन किया था। इस घटनाक्रम के कारण चुनाव आयोग के सामने टकराव की स्थिति पैदा हो गई।

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