West Bengal News: तृणमूल कांग्रेस TMC के भीतर एक बड़ी राजनीतिक हलचल उस समय शुरू हुई जब पार्टी की दो प्रमुख सांसद महुआ मोइत्रा और कल्याण बनर्जी के बीच एक सार्वजनिक और तीखी बहस हो गई। यह विवाद न केवल व्यक्तिगत कटाक्षों तक सीमित रहा, बल्कि इसका असर पार्टी के संसदीय नेतृत्व पर भी पड़ा। नतीजतन, कल्याण बनर्जी ने लोकसभा में मुख्य सचेतक (Chief Whip) पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह पार्टी के युवा चेहरा अभिषेक बनर्जी को लोकसभा में टीएमसी का नेता नियुक्त किया गया।
कैसे हुई विवाद की शुरुआत
यह विवाद 4 अप्रैल 2025 को उस समय शुरू हुआ जब टीएमसी का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली स्थित चुनाव आयोग कार्यालय में डुप्लीकेट वोटर आईडी को लेकर शिकायत दर्ज कराने गया था। इस दौरान सांसदों के हस्ताक्षर एकत्र करने की जिम्मेदारी कल्याण बनर्जी को दी गई थी। बताया गया कि महुआ मोइत्रा का नाम इस सूची से गायब था, जिसे लेकर उन्होंने तुरंत आपत्ति जताई। विवाद इतना बढ़ा कि महुआ मोइत्रा वहां रोने लगीं। वरिष्ठ सांसद सौगत रॉय ने बाद में पुष्टि की। उन्होंने महुआ को रोते देखा और बनर्जी के व्यवहार को “अशिष्ट” करार दिया।
शब्दों की जंग और सार्वजनिक छींटाकशी
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर कुछ व्हाट्सऐप चैट और वीडियो लीक हुए, जिनमें पार्टी के भीतर के आंतरिक संवाद उजागर हुए। इसके बाद महुआ मोइत्रा ने एक पॉडकास्ट में बिना किसी का नाम लिए कहा कि “भारतीय राजनीति में कई पुरुष गहराई से स्त्री-विरोधी, यौन रूप से हताश और मानसिक रूप से विकृत हैं…”
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे लोगों से बहस करना ठीक वैसा ही है जैसे “सुअर से कुश्ती लड़ना”, जो कि आपको गंदा कर देता है। कल्याण बनर्जी ने इस बयान को “अपमानजनक” और “असभ्य” बताते हुए कहा कि ऐसे शब्द पार्टी अनुशासन को नुकसान पहुंचाते हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि महुआ अपने लिए अधिक बोलने का समय चाहती थीं और पार्टी की अंदरूनी व्यवस्था में दखल दे रही थीं।
इस्तीफा और नेतृत्व में बदलाव
4 अगस्त को तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने पार्टी सांसदों के साथ एक वर्चुअल बैठक की। इस बैठक में पार्टी अनुशासन को लेकर सख्त संदेश दिया गया। उसी दिन सुदीप बंदोपाध्याय की जगह अभिषेक बनर्जी को लोकसभा में टीएमसी का नया नेता घोषित किया गया। सुदीप की तबीयत ठीक न होने के कारण यह बदलाव किया गया।
इसी बैठक के बाद कल्याण बनर्जी ने मुख्य सचेतक पद से इस्तीफा सौंप दिया। उन्होंने कहा कि लोकसभा में समन्वय की कमी के लिए वह नैतिक रूप से जिम्मेदार हैं। हालांकि, सूत्रों के अनुसार, उन्होंने इस्तीफे पर अंतिम निर्णय से पहले अभिषेक बनर्जी से चर्चा की इच्छा जताई है।
क्या हैं असली वजहें ?
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह विवाद केवल एक हस्ताक्षर या बयानबाजी का नहीं था, बल्कि आंतरिक सत्ता संघर्ष का संकेत है। महुआ मोइत्रा जो संसद में अपनी मुखरता और तेज-तर्रार शैली के लिए जानी जाती हैं, संभवतः पार्टी के पुराने नेताओं द्वारा उपेक्षित महसूस कर रही थीं। वहीं कल्याण बनर्जी, जो ममता बनर्जी के बेहद करीबी माने जाते हैं, उन्हें महुआ की लोकप्रियता और स्वतंत्र शैली से असहजता हो रही थी।
अभिषेक बनर्जी की नियुक्ति को टीएमसी के भीतर नए नेतृत्व की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। वे युवा हैं, संगठनात्मक क्षमता रखते हैं और ममता बनर्जी का पूरा विश्वास उनके साथ है। अब उनके नेतृत्व में लोकसभा में पार्टी की कार्यशैली और रणनीति में बड़ा बदलाव संभव है। वहीं, मुख्य सचेतक पद पर नया चेहरा आने की संभावना है, जो बेहतर समन्वय बना सके और सांसदों के बीच पारदर्शिता और अनुशासन कायम रख सके।
महुआ मोइत्रा का भविष्य और पार्टी की रणनीति
महुआ मोइत्रा फिलहाल सांसद बनी हुई हैं, लेकिन उन पर ‘कैश फॉर क्वेरी’ मामले में लोकपाल में रिपोर्ट दर्ज है। यह जांच उनकी भूमिका को और पेचीदा बना सकती है। पार्टी को उनके जनाधार और लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए बहुत सोच-समझकर निर्णय लेना होगा।
ममता बनर्जी ने यह साफ कर दिया है कि कोई भी व्यक्ति पार्टी से बड़ा नहीं है और सार्वजनिक मंच पर आंतरिक मामलों को लाना स्वीकार्य नहीं है।
क्या यह बदलाव टीएमसी को मजबूत करेगा?
महुआ मोइत्रा और कल्याण बनर्जी के बीच हुआ यह टकराव केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं, बल्कि टीएमसी की आंतरिक राजनीति में बदलाव और चुनौती की ओर इशारा करता है। पार्टी ने समय रहते नेतृत्व में बदलाव कर स्थिति को संभालने की कोशिश की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अभिषेक बनर्जी का नेतृत्व लोकसभा में पार्टी की छवि और प्रभाव को बेहतर बना पाएगा, या फिर यह बदलाव आंतरिक असंतोष को और गहराएगा।
हमारी इंटर्न सुनिधि सिंह द्वारा लिखित
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