Akhilesh Yadav : उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अभी से मैदान में उतर चुके हैं। सपा की रणनीति अब केवल चुनावी नारों या रैलियों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि ज़मीनी स्तर पर संगठन को मज़बूत करने और विचारधारा के आधार पर कैडर तैयार करने की दिशा में तेज़ी से काम किया जा रहा है।
पीडीए की सफलता से बढ़ा आत्मविश्वास
2024 के लोकसभा चुनाव में ‘पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक’ यानी पीडीए पॉलिटिक्स की बदौलत सपा ने यूपी में 80 में से 37 सीटें जीतकर नया इतिहास रचा। बीजेपी की सवर्ण-पिछड़ा-दलित सोशल इंजीनियरिंग को सपा की पीडीए रणनीति ने पूरी तरह से चुनौती दी। इस जीत से उत्साहित होकर अखिलेश यादव अब इस फॉर्मूले को और मज़बूती देने के लिए वैचारिक और सांगठनिक दोनों मोर्चों पर काम कर रहे हैं।
ज़मीनी कैडर की तैयारी में सपा
बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत उसका मज़बूत कैडर है। इसी तर्ज पर अब सपा ने भी ब्लॉक, तहसील और ज़िला स्तर पर समर्पित टीमों के गठन की रणनीति बनाई है। हर बूथ पर पहले से मौजूद 10 सदस्यों की टीम के अलावा अब 5 नए युवाओं को जोड़ा जाएगा, जिन्हें समाजवादी विचारधारा से प्रशिक्षित किया जाएगा। ये युवा न सिर्फ पार्टी के लिए प्रचार करेंगे, बल्कि मतदाता सूची की निगरानी से लेकर संगठन की ज़रूरतों तक हर मोर्चे पर सक्रिय रहेंगे।
सपा के प्रदेश महासचिव अताउर्रहमान के अनुसार, गोपनीय जांच में बेहतर प्रदर्शन करने वाले बूथों के कार्यकर्ताओं से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) खुद संवाद करेंगे। संगठन में आगे बढ़ने के लिए यह प्रदर्शन ही पैमाना बनेगा।
वैचारिक लड़ाई की रणनीति
सपा अब वैचारिक मोर्चे पर भी संघ परिवार को सीधी चुनौती देने की तैयारी में है। राममनोहर लोहिया के उदार हिंदुत्व को आधार बनाकर सपा, संघ के कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ अभियान चलाएगी। लोहिया के विचारों को पंपलेट्स और जनसभाओं के माध्यम से गांव-गांव तक पहुंचाया जाएगा। साथ ही, मनुस्मृति के खिलाफ सपा का समाजवादी स्टैंड भी ज़ोरशोर से सामने रखा जाएगा, जिससे दलित और पिछड़े वर्ग के बीच पार्टी की पकड़ और मज़बूत की जा सके।
दलित वोटबैंक पर खास फोकस
दलित वोटबैंक को जोड़ने के लिए सपा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बैकग्राउंड वाले नेताओं को अपने साथ ला रही है। हाल ही में आगरा में करणी सेना के स्वाभिमान सम्मेलन के बाद उपजी स्थिति में सपा नेता और राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन का खुला तेवर भी इसी रणनीति का हिस्सा है।
रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना की आपत्ति और विरोध के बीच सपा अब इस मुद्दे को दलित बनाम ठाकुर सियासत का रंग देने में जुट गई है। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) 19 अप्रैल को आगरा में रामजीलाल सुमन से मुलाक़ात करेंगे और वहां से दलित राजनीति को लेकर बड़ा ऐलान कर सकते हैं।
आगरा से बजेगा दलित राजनीति का बिगुल
आगरा, जो डॉ. भीमराव आंबेडकर और कांशीराम की सियासी प्रयोगशाला रहा है, एक बार फिर दलित राजनीति का केंद्र बनने जा रहा है। आंबेडकर जयंती के अवसर पर सपा द्वारा आयोजित स्वाभिमान-स्वमान समारोह के ज़रिए पार्टी संविधान और आरक्षण बचाने के नैरेटिव को मजबूत कर रही है।
सपा साफ़ कर रही है कि रामजीलाल सुमन का विरोध दरअसल बीजेपी समर्थित ताकतों का हिस्सा है। यह लड़ाई वैचारिक है – एक ओर वे लोग हैं जो सामाजिक न्याय के लिए लड़ रहे हैं और दूसरी ओर वे, जो अपनी सामंती सोच से बाहर नहीं आना चाहते।