Child Trafficking : सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड ट्रैफिकिंग के एक मामले की सुनवाई करते हुए गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर कोई निःसंतान है या उसे बेटे की चाह है, तो इसका मतलब यह नहीं कि किसी और का बच्चा चुराकर उसे अपनाया जाए। यह तरीका न नैतिक है और न ही कानूनी।
कोर्ट ने एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि एक आरोपी दंपति ने बेटे की चाह में 4 लाख रुपये में बच्चा खरीद लिया, जबकि उन्हें यह पूरी जानकारी थी कि वह बच्चा चोरी किया गया है। कोर्ट ने कहा कि यह सोच निंदनीय है कि कोई अपने स्वार्थ के लिए किसी मां-बाप से उनका बच्चा छीन ले।
“उन माता-पिता का दर्द समझो”
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भावुक होते हुए कहा, “उन माता-पिता के दर्द को समझो, जिनका बच्चा किसी अज्ञात गिरोह के पास है। कल्पना करो, क्या गुजरती होगी उन पर जो दिन-रात यह सोचकर जीते हैं कि उनका बच्चा कहाँ और किस हाल में है।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट और यूपी सरकार पर नाराज़गी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर भी नाराज़गी जताई। कोर्ट ने कहा कि दोनों की तरफ से जरूरी गंभीरता नजर नहीं आई। हाईकोर्ट ने आरोपियों को बेल दे दी, लेकिन जमानत देते समय कोई सख्त शर्तें नहीं लगाईं।
कोर्ट ने सवाल उठाया कि बेल मिलने के बाद अब पुलिस के पास इन लोगों का कोई रिकॉर्ड भी नहीं है, जिससे जांच और निगरानी में मुश्किलें आ रही हैं।
“बच्चा चुराकर औलाद नहीं मिलती”
कोर्ट ने दोहराया कि यदि कोई नि:संतान है, तो वह कानूनी और नैतिक तरीके से गोद लेने की प्रक्रिया अपनाए। “बेटा पाने की चाह में बच्चा खरीदना और वो भी चोरी का, यह न समाज स्वीकार कर सकता है, न संविधान,” कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा।
वाराणसी के अस्पतालों में बच्चा चोरी की घटनाएं
यह मामला वाराणसी और आसपास के अस्पतालों में हुई बच्चा चोरी की घटनाओं से जुड़ा है। पिछले साल इन मामलों में कुछ आरोपियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी, जिसके खिलाफ पीड़ित परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह भारतीय इंस्टीट्यूट द्वारा सब्मिट की गई रिपोर्ट का गहन अध्ययन करे और कोर्ट की सिफारिशों को शीघ्र लागू करे।
इसके साथ ही कोर्ट ने देश की सभी हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया है कि वे चाइल्ड ट्रैफिकिंग से संबंधित लंबित मामलों की स्थिति की समीक्षा करें। सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि इन मामलों का प्रतिदिन ट्रायल किया जाए और 6 महीने के भीतर उनका निपटारा हो।