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UP Govt Decision on Caste: यूपी सरकार का बड़ा फैसला, अब FIR, सरकारी दस्तावेज और सोशल मीडिया पर नहीं होगा जाति का जिक्र

by | Sep 22, 2025 | अपना यूपी, बड़ी खबर, मुख्य खबरें, राजनीति

UP Govt Decision on Caste: उत्तर प्रदेश से एक बड़ा और अहम फैसला सामने आया है। यूपी सरकार ने जाति को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है, जिसका मकसद है समाज में जाति के नाम पर होने वाले भेदभाव और बंटवारे को कम करना। इस फैसले के तहत अब राज्य में जाति के नाम पर रैलियां नहीं होंगी, न ही सरकारी दस्तावेजों में किसी की जाति का जिक्र किया जाएगा।

सरकार ने साफ निर्देश दिए हैं कि अब:

  • एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो और चार्जशीट जैसे पुलिस रिकॉर्ड में किसी भी व्यक्ति की जाति का जिक्र नहीं किया जाएगा।
  • अब आरोपी की पहचान पिता और मां के नाम से की जाएगी, न कि जाति से।
  • सरकारी और कानूनी दस्तावेजों से जाति वाला कॉलम हटाने की तैयारी है।
  • गाड़ियों पर जाति लिखवाना या दिखाना बैन कर दिया गया है।
  • नोटिस बोर्ड या पब्लिक प्लेस पर जाति आधारित नारे, प्रतीक या महिमामंडन नहीं होगा।
  • सोशल मीडिया पर जाति को लेकर नफरत फैलाने या महिमामंडन करने वाली पोस्ट पर भी अब आईटी एक्ट के तहत सख्त कार्रवाई होगी।

हालांकि, SC/ST एक्ट जैसे मामलों में जहां जाति की जानकारी जरूरी होती है, वहां ये नियम लागू नहीं होगा। इन मामलों में सावधानी से जाति का उल्लेख किया जाएगा ताकि पीड़ित को न्याय मिलने में कोई रुकावट न आए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी हाल ही में एक केस की सुनवाई के दौरान जातिगत महिमामंडन को ‘राष्ट्र-विरोधी’ बताया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाना है तो जातिवाद की सोच को खत्म करना जरूरी है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि जातियों के नाम, प्रतीक और झंडे सार्वजनिक जगहों से हटाए जाएं।

सरकार ने हर जिले में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षकों को इन निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए विशेष समितियां बनाने को कहा है।

जहां एक तरफ ये फैसला जातिवाद को खत्म करने की दिशा में उठाया गया मजबूत कदम बताया जा रहा है, वहीं कुछ लोग इस पर सवाल भी उठा रहे हैं।

कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों का कहना है कि अगर सरकारी दस्तावेजों और एफआईआर से जाति का जिक्र हटा दिया गया, तो दलित, पिछड़े और आदिवासी समुदाय अपनी असली समस्याएं और अन्याय को कैसे सामने रख पाएंगे?

जाति-आधारित हिंसा, भेदभाव या अत्याचार के मामलों में जाति की जानकारी होना कई बार जरूरी होता है, ताकि आरोपियों को सही सजा मिल सके।

कुछ लोग इस फैसले को सरकार की दोहरी नीति भी बता रहे हैं। कुछ दिन पहले ही सरकार दुकानों और ठेलों पर नाम-पट्टिका (नेमप्लेट) लगाने का आदेश दे रही थी, जिसमें जाति का नाम अक्सर दिखता है। अब जाति मिटाने की बात की जा रही है।

कई लोग मानते हैं कि इस फैसले के पीछे असली निशाना कहीं न कहीं आरक्षण व्यवस्था और SC/ST एक्ट है, जिसे धीरे-धीरे कमज़ोर करने की कोशिश की जा रही है।

सरकार का यह कदम दिखने में तो समानता और एकता की दिशा में एक अच्छा प्रयास लगता है, लेकिन इससे जुड़ी आशंकाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

अगर यह फैसला सही तरीके से और सभी वर्गों की सुरक्षा और अधिकारों को ध्यान में रखकर लागू किया गया, तो यह निश्चित तौर पर समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। लेकिन अगर इससे उन वर्गों की आवाज दबती है जो पहले से हाशिए पर हैं, तो यह फैसला एक नई चुनौती बन सकता है।

अब देखना होगा कि इस फैसले को जमीन पर कैसे लागू किया जाता है, और समाज में इसका असर कैसा पड़ता है।

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