UP News : गज़वा-ए-हिंद (भारत पर आक्रमण) पर एक हदीस के संदर्भ में दी गई प्रतिक्रिया के अनुसार इस्लामिक शैक्षणिक संस्थान दारुल उलूम 10 साल बाद जांच के दायरे में आ गया है। वेबसाइट के जरिए दिए गए फतवे के आधार पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इसे राष्ट्रविरोधी करार देते हुए सहारनपुर के जिलाधिकारी और एसएसपी (UP News) को जांच के निर्देश दिए हैं। गुरुवार को देवबंद एसडीएम अंकुर वर्मा और सीओ अशोक सिसौदिया ने इस संबंध में दारुल उलूम प्रबंधन से पूछताछ की।
रिपोर्ट आने के बाद मामले में वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा कार्रवाई की जा सकती है। 2015 में किसी ने दारुल उलूम से “गज़वा-ए-हिंद” के बारे में पूछा था जिस पर दारुल उलूम ने “सुनन अल-नसाई” किताब का हवाला दिया था। कहा गया कि इसमें ‘ग़ज़वा-ए-हिंद’ को लेकर एक पूरा चैप्टर है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कहा कि यह राष्ट्र-विरोधी है क्योंकि वह “ग़ज़वा-ए-हिन्द” को इस्लामी दृष्टिकोण से वैध मानता है। मामले में आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने सहारनपुर डीएम और एसएसपी को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा जिसके बाद देवबंद एसडीएम अंकुर वर्मा और सीईओ अशोक सिसौदिया दारुल उलूम पहुंचे।
यहां उन्होंने संस्था के रेक्टर मौलाना अबुल कासिम नौमानी और डिप्टी रेक्टर मौलाना अब्दुल खालिक मद्रासी से मुलाकात की। दोनों जिम्मेदार अधिकारियों ने अधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि हदीस में दिया गया उत्तर केवल मौखिक रूप से कॉपी किया गया था। इसमें आज के लिए कुछ भी नया नहीं है। मौलाना अबुल कासिम नौमानी ने उल्लेख किया कि उन्हें लिखित रूप में कुछ भी नहीं मिला। अधिकारियों से जो पूछा गया उन्होंने मौखिक रूप से जवाब दिया है।
ऐसा कहा जाता था कि 711 ईस्वी से 713 ईस्वी तक सिंध में मुहम्मद बिन कासिम के समय में “ग़ज़वा-ए-हिन्द” हुआ था। यह इतिहास है और इतिहास बताना अपराध नहीं माना जा सकता। इस मामले को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से एक पत्र मिला है जिसमें फतवे में दिए गए जवाब को बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन और कानून के खिलाफ माना गया है। दारुल उलूम के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। जांच की जा रही है और जांच के बाद जिम्मेदार पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।