Kedarnath News : उत्तराखंड की अति पावन चारधाम यात्रा अब पूरी तरह से शुरू हो चुकी है। 28 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के बाद 2 मई को केदारनाथ धाम और अब 5 मई, रविवार को बदरीनाथ धाम के कपाट भी वैदिक मंत्रोच्चार और पारंपरिक विधि-विधान के साथ खोले गए। कपाट खुलते ही भगवान बदरी विशाल के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
निभाई गई हजारों साल पुरानी परंपरा
बदरीनाथ मंदिर के कपाट तीन चाबियों से खोले जाते हैं। इसमें पहली चाबी टिहरी राजपरिवार के प्रतिनिधि द्वारा, दूसरी हक-हकूकधारी बामणी गांव के भंडारी थोक और तीसरी चाबी बामणी गांव के मेहता थोक द्वारा लगाई जाती है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।
कपाट खुलने के बाद सबसे पहले बदरीनाथ के रावल (मुख्य पुजारी) मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। भगवान बदरी विशाल को दंडवत प्रणाम कर उनकी अनुमति से उन्हें ओढ़ाया गया घृतयुक्त ऊनी कंबल उतारा जाता है। इस कंबल को कपाट बंद होने से पहले भगवान को ओढ़ाया गया था। इस घृत कंबल के एक-एक रेशे को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है।
25 कुंटल फूलों से सजा बदरीनाथ मंदिर परिसर
बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर पूरा मंदिर परिसर 25 कुंटल फूलों से सजाया गया। इस फूलों की सजावट का कार्य पिछले 20 वर्षों से एक ही परिवार द्वारा किया जा रहा है। साथ ही मंदिर को आकर्षक लाइटों से भी सजाया गया, जिससे इसकी भव्यता और श्रद्धा का दृश्य और भी भावनात्मक हो गया।
देवर्षि नारद और केरल के रावल की परंपरा
कपाट बंद रहने के दौरान मंदिर में भगवान बदरी विशाल की पूजा देवर्षि नारद करते हैं, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है। जबकि कपाट खुलने के साथ ही यह मुख्य पुजारी की जिम्मेदारी केरल प्रांत के नम्बूदरी ब्राह्मण रावल को सौंप दी जाती है। यह भी एक विशेष धार्मिक परंपरा है जो सदियों से निभाई जा रही है।
चारधाम यात्रा ने पकड़ी रफ्तार
चारधाम यात्रा के सभी धाम अब श्रद्धालुओं के लिए खुल चुके हैं।
- गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट 28 अप्रैल को
- केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को
- और बदरीनाथ धाम के कपाट 5 मई को खोले गए।