Electoral Bonds Case : सुप्रीम कोर्ट की कड़ी जांच का सामना करने के बाद भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने इलेक्टोरल बांड का डेटा चुनाव आयोग को सौंप दिया है। इस मामले को लेकर अब एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने चुनाव आयोग को एक रिपोर्ट प्रदान की है जिसमें चुनावी बांड की खरीद और बिक्री से संबंधित जानकारी शामिल है, जिसमें खरीदारों के नाम भी शामिल हैं।
एसबीआई के चेयरमैन दिनेश खारा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने कोर्ट के आदेशों का पालन किया है। एसबीआई ने खरीददारों के विवरण के साथ चुनावी बॉन्ड की खरीद और बिक्री को शामिल करते हुए एक रिपोर्ट तैयार की है और इसे समय पर चुनाव आयोग को सौंप दिया है। हलफनामे में एसबीआई ने उल्लेख किया कि बैंक ने एक पेन ड्राइव और दो पासवर्ड-सुरक्षित पीडीएफ फाइलों के माध्यम से एक सीलबंद लिफाफे में सामग्री सौंपी है। जिस चुनावी बांड के लिए किसी भी पार्टी को भुगतान नहीं मिला है, वह राशि पीएम राहत कोष में जमा कर दी गई है।
कुल 22,217 चुनावी बॉन्ड बेचे
Electoral Bonds Case : हलफनामे के अनुसार, एसबीआई ने आंकड़ों के माध्यम से विवरण प्रदान किया, जिसमें बताया गया कि 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 तक कुल 22,217 चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं। इनमें से 22,030 को भुना लिया गया है, और 187 का भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है। इससे स्पष्ट है कि नियमों के तहत अवमुक्त धनराशि को पीएम राहत कोष में जमा करा दिया गया है।
इससे पहले एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी साझा करने के लिए 30 जून तक की मोहलत मांगी थी। हालांकि अदालत ने एसबीआई के अनुरोध को खारिज कर दिया और उन्हें 12 मार्च तक सभी विवरण चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एसबीआई की याचिका खारिज करते हुए उन्हें 15 मार्च शाम 5 बजे तक सारी जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया कराने का आदेश दिया। कोर्ट ने चुनाव आयोग को तय समय तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया।
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या हैं?
Electoral Bonds Case : केंद्र सरकार द्वारा 2017 में पेश की गई, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को 29 जनवरी, 2018 को कानूनी रूप से लागू किया गया था। सरकार ने दावा किया कि यह योजना चुनावी फंडिंग में ‘पारदर्शिता’ और ‘स्वच्छ धन’ लाने के लिए लाई गई थी।
एसबीआई 29 शाखाओं से अलग-अलग राशि के चुनावी बांड जारी करता है। मूल्यवर्ग एक हजार से एक करोड़ रुपये तक हो सकता है। कोई भी व्यक्ति इन बांडों को खरीद सकता है और अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को योगदान दे सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी साझा करने का आदेश क्यों दिया?
Electoral bond : इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की वैधता को 2019 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 15 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना अनुच्छेद 19(1) और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के क्लॉज 7 में कहा गया है कि बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी गोपनीय रखी जाएगी, लेकिन कोर्ट या कानूनी एजेंसियों के मांगने पर खुलासा किया जा सकता है। इसलिए, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के प्रावधानों के अनुसार, अदालत के आदेश के अनुसार एसबीआई को यह जानकारी सार्वजनिक करनी होगी।