Uttarakhand News: केदारनाथ (Kedarnath) जो हमेशा भक्तों की आस्था और शांति का प्रतीक रहा है, एक बार फिर चीखों और राख की चादर में लिपट गया। रविवार सुबह हुए हेलिकॉप्टर हादसे ने कई घरों की खुशियों को खाक कर दिया। 23 महीने की मासूम काशी, फैशन डिजाइनिंग की छात्रा तुष्टि, अपने बच्चों से मिलने लौट रहे विक्रम, और जुड़वा बच्चों के पिता बने पायलट – सबकी यात्राएं अधूरी रह गईं।
यह सिर्फ एक हादसा नहीं था, बल्कि कई परिवारों की उम्मीदों और सपनों का अंत था।
44 जवानों ने उठाए जले हुए शव
धुएं, चीखों और राख के बीच 44 राहतकर्मियों ने सात जले हुए शवों को मलबे से बाहर निकाला। हादसे की भयावहता इतनी थी कि शवों की पहचान करना भी मुश्किल हो गया। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, डीडीआरएफ और स्थानीय पुलिस बल की टीमें तुरंत हरकत में आईं। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन सिंह रजवार ने बताया कि सुबह 6:15 बजे सूचना मिलते ही रेस्क्यू टीमों को रवाना कर दिया गया था और एक घंटे के भीतर टीमें मौके पर पहुंच गई थीं।
राहत कार्य में तैनात बल
- एनडीआरएफ के 22 जवान
- एसडीआरएफ के 8 जवान
- डीडीआरएफ के 6 जवान
- पुलिस के 8 जवान
सभी शवों को बेहद दुर्गम रास्तों से होते हुए गौरीकुंड तक लाया गया।
दादी और नातिन की एक साथ मौत
उत्तर प्रदेश के बिजनौर से आईं विनोदा देवी अपनी नातिन तुष्टि सिंह के साथ शनिवार को बाबा केदारनाथ के दर्शन करने पहुंची थीं। दर्शन के बाद रविवार सुबह वह गुप्तकाशी लौटने के लिए हेलिकॉप्टर की पहली शटल में सवार हुईं। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। हेलिकॉप्टर हादसे में दोनों की मौत हो गई।
“नहीं आना चाहती थी तुष्टि, मां ने जबरदस्ती भेजा था”
बिजनौर के नगीना निवासी वकील धर्मपाल सिंह अपनी पत्नी, नातिन और दो पोतों के साथ 13 जून को केदारनाथ (Kedarnath) यात्रा पर निकले थे। तुष्टि दिल्ली में फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रही थी और इस यात्रा पर नहीं आना चाहती थी। लेकिन मां की ज़िद पर उसे नानी के साथ भेजा गया। रविवार को जब सभी दर्शन कर लौटने की तैयारी में थे, तो हेलिकॉप्टर में केवल दो ही सीटें थीं। धर्मपाल सिंह ने अपनी पत्नी और नातिन को पहले भेज दिया, और खुद दोनों पोतों के साथ वहीं रुके।
कुछ ही देर में उन्हें खबर मिली कि हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हो गया, और उसमें सवार सभी सात लोगों की मौत हो गई है।
आग में घुली आवाजें
शर्मिला, जो राहत कार्य में शामिल थीं, ने बताया “हम जब घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां एक बच्ची गिरी हुई मिली, लेकिन उसमें जान नहीं थी। शायद हेलिकॉप्टर से गिरकर वह पत्थर से टकराई थी। आग इतनी भयानक थी कि उसके बीच कुछ सुनाई तक नहीं दे रहा था।”
केदारनाथ (Kedarnath) की घाटी, जहां हर दिन आस्था गूंजती थी, आज मौत की खामोशी से भर गई थी।
एक सवाल – क्या यह हादसा टाला जा सकता था?
इस भीषण हादसे ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं –
- क्या हेलिकॉप्टर सेवा की सुरक्षा जांच पर्याप्त थी?
- क्या मौसम की जानकारी को गंभीरता से लिया गया?
- क्या यात्रियों की संख्या, भार और मौसम की स्थिति का संतुलन सही ढंग से जांचा गया?
इन सवालों के जवाब भले ही जांच के बाद मिलें, लेकिन जिन परिवारों ने अपनों को खोया है, उनके लिए यह जख्म कभी नहीं भर पाएंगे।
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