CJI Case: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को उस घटना की कड़ी निंदा की, जिसमें एक वकील ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर जूता फेंका था। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की हरकतें न सिर्फ बार (वकीलों के समुदाय) को, बल्कि पूरे समाज को ठेस पहुंचाती हैं।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा, हम याचिकाकर्ता की चिंता से सहमत हैं, बल्कि उससे भी ज़्यादा तीव्रता से। ऐसी घटनाएं सबको आहत करती हैं और इन्हें रोकने के लिए पुख्ता कदम उठाने ज़रूरी हैं।
हाईकोर्ट ये बातें एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान कह रहा था। याचिका में मांग की गई थी कि सोशल मीडिया से उस वीडियो को हटाया जाए जिसमें जूता फेंकने की घटना दिखाई दे रही है। याचिकाकर्ता तेजस्वी मोहन ने कहा कि यह वीडियो अभी भी सोशल मीडिया पर घूम रहा है और इससे न्यायपालिका की छवि को नुकसान हो रहा है।
उन्होंने यह भी आग्रह किया कि भविष्य में ऐसी घटनाओं के दोषियों की पहचान सार्वजनिक न की जाए, ताकि उन्हें बेवजह प्रचार न मिले।
क्या है पूरा मामला?
यह घटना 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में हुई थी। 71 साल के वकील राकेश किशोर ने सीजेआई की अदालत में जूता फेंक दिया था। घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने उनका वकालत लाइसेंस तुरंत निलंबित कर दिया।
घटना के वक्त सीजेआई बी.आर. गवई ने पूरी शांति बनाए रखी और कोर्ट स्टाफ से कहा कि इस मामले को नज़रअंदाज़ किया जाए और आरोपी वकील को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए।
इस हरकत की देशभर में निंदा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सीजेआई से बात कर इसे निंदनीय घटना बताया। बाद में 16 अक्टूबर को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने अदालत में किशोर के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की याचिका जल्द सुनवाई के लिए लगाने की मांग की।
मेहता ने अदालत को बताया कि अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने इस मामले में आपराधिक अवमानना की अनुमति दे दी है, क्योंकि यह न्यायपालिका की गरिमा और संस्थागत सम्मान से जुड़ा मामला है।
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