Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना नदी में गैर-शोधित सीवेज छोड़े जाने के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए राजधानी की प्रमुख नागरिक एजेंसियों को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को आदेश दिया है कि वे हाल ही में गठित विशेष समिति द्वारा उजागर की गई खामियों को दूर करने की एक संयुक्त कार्ययोजना तैयार कर अदालत में पेश करें।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि यमुना की स्थिति को सुधारने के लिए केवल आश्वासनों से काम नहीं चलेगा, अब ठोस और प्रभावी कदम उठाने होंगे। विशेष समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि यमुना में अभी भी बड़ी मात्रा में बिना उपचारित सीवेज डाला जा रहा है, जो न केवल पर्यावरण के लिए घातक है, बल्कि आम जनता के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा है।
सभी प्रमुख एजेंसियों की जिम्मेदारी तय
हाईकोर्ट ने इस मामले में दिल्ली जल बोर्ड और नगर निगम के साथ-साथ दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (DSIIDC) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) को भी जिम्मेदार एजेंसियों के रूप में कार्य में शामिल किया है। अदालत ने कहा कि अब इन सभी एजेंसियों को मिलकर काम करना होगा ताकि यमुना में केवल शुद्ध जल का ही प्रवाह सुनिश्चित हो सके।
7 अगस्त को विशेष बैठक का आदेश
कोर्ट ने विशेष समिति को 7 अगस्त 2025 को एक व्यापक बैठक आयोजित करने का आदेश दिया है, जिसमें डीजेबी, एमसीडी, डीएसआईआईडीसी, डीपीसीसी सहित अन्य आवश्यक एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहेंगे। बैठक में समिति द्वारा चिन्हित कमियों को दूर करने तथा भावी कार्ययोजना को अंतिम रूप देने पर गहन विचार-विमर्श किया जाएगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि आवश्यक हुआ तो आगे और भी बैठकें आयोजित की जा सकती हैं।
इस बैठक के पश्चात डीजेबी और एमसीडी को एक संयुक्त रिपोर्ट दाखिल करनी होगी, जिसमें समिति द्वारा उठाए गए मुद्दों का समाधान करने के लिए अपनाए गए ठोस कदमों की जानकारी दी जाएगी।
कैसे शुरू हुआ मामला?
यह मामला वर्ष 2022 में स्वतः संज्ञान लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका से जुड़ा है। उस समय दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में वर्षा जल संचयन की कमी और मानसून के दौरान सड़कों पर भारी जलभराव की समस्या पर चिंता जताई थी। इसके बाद 5 मई 2024 को अदालत ने दिल्ली के सभी 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) का स्थलीय निरीक्षण करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया था।
कोर्ट को प्रथम दृष्टया यह जानकारी मिली थी कि दिल्ली के अधिकांश एसटीपी निर्धारित मानकों के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे हैं, जिससे यमुना नदी में सीधे बिना उपचारित सीवेज का प्रवाह हो रहा है। इसके अलावा अदालत ने राजधानी की जल निकासी व्यवस्था को भी बेहद दयनीय स्थिति में बताया था और तत्काल सुधार की आवश्यकता जताई थी।
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