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Parliament Winter Session: 1 दिसंबर से शुरू होगा संसद का शीतकालीन सत्र, राष्ट्रपति ने दी मंजूरी, विपक्ष ने छोटे सत्र पर उठाए सवाल

by | Nov 8, 2025 | बड़ी खबर, मुख्य खबरें, राजनीति

Parliament Winter Session: केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के शीतकालीन सत्र को बुलाने के सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह सत्र 1 दिसंबर 2025 से शुरू होकर 19 दिसंबर 2025 तक चलेगा।

रिजिजू ने पोस्ट में लिखा, भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी ने 1 दिसंबर से 19 दिसंबर तक संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है (संसदीय कार्य की अनिवार्यताओं के अधीन)। उम्मीद है कि यह सत्र रचनात्मक और सार्थक रहेगा, जो हमारे लोकतंत्र को और मजबूत करेगा तथा लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा।

इससे पहले संसद का मानसून सत्र 21 अगस्त को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। इस सत्र के दौरान एसआईआर (SIR) को लेकर विपक्ष के लगातार हंगामे से संसद की कार्यवाही ठप रही। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुल 166 घंटे बर्बाद हुए और इससे जनता के लगभग 248 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। लोकसभा के 84.5 घंटे, जबकि राज्यसभा के 81.12 घंटे का समय हंगामे में चला गया। राज्यसभा की कार्यवाही महज 38.88 घंटे ही चल पाई। अनुमान के मुताबिक, संसद के हर मिनट की कार्यवाही पर करीब 2.5 लाख रुपये का खर्च आता है। यानी एक घंटे का खर्च लगभग 1.5 करोड़ रुपये होता है। इस हिसाब से लोकसभा में 126 करोड़ और राज्यसभा में 122 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

हालांकि सत्र के आखिरी नौ दिनों में सरकार ने तेज़ी से विधायी कामकाज निपटाया राज्यसभा में 15 और लोकसभा में 12 विधेयक पास किए गए।

आमतौर पर संसद के तीन सत्र होते हैं:

  1. बजट सत्र – फरवरी से मई तक चलता है, जिसमें सरकार का बजट पेश और पारित किया जाता है।
  2. मानसून सत्र – जुलाई से अगस्त के बीच होता है।
  3. शीतकालीन सत्र – साल के अंत में आमतौर पर नवंबर-दिसंबर में आयोजित किया जाता है।

कांग्रेस ने इस बार शीतकालीन सत्र की अवधि को लेकर नाराज़गी जताई है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, संसद का शीतकालीन सत्र असामान्य रूप से छोटा और देरी से रखा गया है। यह सत्र सिर्फ 15 कार्यदिवस का होगा। इससे क्या संदेश दिया जा रहा है? उन्होंने आगे कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार के पास न तो कोई नया एजेंडा है, न कोई बड़ा विधेयक और न ही बहस की अनुमति देने का इरादा।

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