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Gorakhpur News : ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत पर सीएम योगी ने भारतीय लोकतंत्र को सराहा

by | Sep 15, 2024 | अपना यूपी, आपका जिला, देश, बड़ी खबर, मुख्य खबरें, राजनीति

Gorakhpur News : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में भारतीय सभ्यता और लोकतंत्र पर प्रकाश डालते हुए एक महत्वपूर्ण सम्मेलन को संबोधित किया। यह सम्मेलन ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का विषय था, “लोकतंत्र की जननी है भारत।”

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने (Gorakhpur) भाषण में भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के लोकतांत्रिक मूल्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जब दुनिया में सभ्यता, संस्कृति और मानवीय मूल्यों के प्रति आग्रह नहीं था, तब भारत में ये मूल्य चरम पर थे। भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाया है। यह विचारधारा किसी का शोषण करने या किसी पर जबरन शासन करने की नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ की भावना से प्रेरित था।

सीएम योगी ने कहा कि इस भावना का नया स्वरूप आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के संकल्प में भी देखा जा सकता है। उन्होंने भारतीय ऋषि परंपरा की ‘जियो और जीने दो’ की धारणा को भी रेखांकित किया, जिसे सच्चा लोकतंत्र मानते हुए उन्होंने इसे भारत का उपहार बताया।

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सम्मेलन के (Gorakhpur) मुख्य अतिथि, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का स्वागत करते हुए सीएम योगी ने वैदिक कालखंड, रामायणकालीन और महाभारतकालीन उद्धरणों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि भारतीय लोकतंत्र में प्राचीन समय से ही जनता की आवाज और हित को सर्वोपरि रखा गया है।

सीएम योगी ने कहा कि भारतीय सभ्यता में हमेशा यही माना गया है कि प्रजा का सुख राजा का दायित्व होता है। उदाहरण के रूप में, रामायण काल में भगवान श्रीराम ने जनता की आवाज को महत्व दिया और भगवान श्रीकृष्ण ने खुद को कभी राजा नहीं समझा। महाभारतकाल में, द्वारका में जब अंतर्द्वंद्व प्रारंभ हुआ, तब गणपरिषद ने शासन का कार्य संभाला। भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय परिषद के सदस्यों की दुर्गति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य के नियम प्रत्येक नागरिक पर समान रूप से लागू होते हैं।

इस प्रकार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारतीय सभ्यता और लोकतंत्र की गहराई और मूल्य को उजागर करते हुए यह स्पष्ट किया कि भारत की लोकतांत्रिक परंपरा प्राचीन समय से ही जनहित और न्याय पर आधारित रही है।

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