Noida Fake Police Station: नोएडा पुलिस को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। सेक्टर-70 इलाके में चल रहे एक फर्जी ‘इंटरनेशनल पुलिस एंड क्राइम इंवेस्टिगेशन ब्यूरो’ के कार्यालय का भंडाफोड़ किया गया है। इस फर्जी ऑफिस की आड़ में आरोपी खुद को सरकारी अधिकारी बताकर आम जनता से धोखाधड़ी कर रहे थे।
पुलिस ने थाना फेस-3 और सेंट्रल नोएडा की टीम के साथ कार्रवाई करते हुए 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। छापेमारी के दौरान उनके कब्जे से फर्जी दस्तावेज, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, नकदी, पुलिस जैसी मुहरें और प्रतीक चिन्ह बरामद किए गए।
आरोपियों की ठगी का तरीका
आरोपी बेहद योजनाबद्ध ढंग से लोगों को धोखा दे रहे थे। वे एक किराए का ऑफिस लेकर उसमें इंटरनेशनल पुलिस का बोर्ड लगाते थे और दावा करते थे कि उनकी संस्था का संबंध अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों जैसे:
- इंटरपोल (Interpol)
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
- यूरेशिया पोल
से है। लोगों को भरोसे में लेने के लिए वे खुद को “लोकसेवक” बताकर डोनेशन के नाम पर पैसे वसूलते थे। इसके लिए उन्होंने एक वेबसाइट भी बना रखी थी — www.intlpcrib.in, जिस पर वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के फर्जी सर्टिफिकेट और पहचान-पत्र दिखाते थे।
वेबसाइट का विवरण और गतिविधियां
- वेबसाइट का उपयोग: आरोपियों ने अपनी वेबसाइट — www.intlpcrib.in — का उपयोग “डोनेशन” एकत्र करने, फर्जी अंतरराष्ट्रीय प्रमाणपत्र दिखाने, और खुद को एक आभासी जांच एजेंसी का हिस्सा बताने के लिए किया था।
- ठगी का तरीका: इस वेबसाइट पर मंत्रालयों जैसे – ट्राइबल अफेयर्स, आयुष, और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण – के नाम पर फर्जी प्रमाणपत्र एवं पहचान पत्रों की तस्वीरें दिखाकर लोगों को विश्वास में लिया जाता था
- ऑफिस सेटअप: फरवरी-माचीली तरीके से इंटरनेट पर एक ऑफिस की टोन बनाकर, वेबसाइट को एक डिजिटल फ्रंटलाइन की तरह इस्तेमाल किया गया, जिससे लोगों को वास्तविक संस्थान होने का भ्रम होता था
क्या-क्या बरामद हुआ?
पुलिस ने आरोपियों के पास से निम्नलिखित सामान जब्त किया।
- 9 मोबाइल फोन
- 17 स्टांप मुहर
- 6 चेक बुक
- 9 फर्जी आईडी कार्ड
- नकदी ₹42,300
- मंत्रालय जैसी संस्थाओं के नाम पर बने सर्टिफिकेट
- 4 नकली पुलिस बोर्ड
- वेबसाइट और सोशल मीडिया सामग्री से जुड़े डिजिटल उपकरण
केस में लगी धाराएं
गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया है, जिसमें शामिल हैं:
- IPC की धारा: 204, 205, 318, 319, 336, 339, 338, 3(5)
- IT एक्ट: 66C, 66D
- प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम: धारा 150
पहले भी चला चुके हैं फर्जी ऑफिस
पुलिस जांच में यह भी सामने आया है कि आरोपी इससे पहले पश्चिम बंगाल में भी ऐसा ही फर्जी ऑफिस चला चुके हैं। फिलहाल पुलिस उनके बैंक खातों, पुराने रिकॉर्ड और अन्य सहयोगियों की जानकारी जुटा रही है। इस पूरे मामले में अब कई एजेंसियां भी सक्रिय हो गई हैं।
यह मामला कुछ और अहम सवाल खड़े करता है…
- क्या पुलिस और खुफिया एजेंसियों की गश्त और निगरानी प्रणाली में इतनी बड़ी चूक की गुंजाइश होनी चाहिए, खासकर शहरी और हाई-प्रोफाइल इलाकों में?
- क्या मकान मालिक या बिल्डिंग प्रशासन ने इस ऑफिस के किरायेदारों की सत्यापन प्रक्रिया की थी, या यह जानबूझकर नजरअंदाज किया गया?
- भारत में फर्जी पहचान पत्र, मंत्रालयों के सर्टिफिकेट और सरकारी प्रतीकों की नकल बनाना इतना आसान कैसे हो गया? इसके पीछे कौन से सिस्टम फेल हो रहे हैं?
- क्या हमारी साइबर एजेंसियों को ऐसी संदिग्ध वेबसाइट्स की निगरानी के लिए टेक्नोलॉजिकल तौर पर और मजबूत नहीं किया जाना चाहिए?
- क्या सोशल मीडिया और वेबसाइट के जरिए खुद को अंतरराष्ट्रीय संस्था बताना अब नया ट्रेंड बन गया है? ऐसे डिजिटल ठगों की पहचान कैसे हो?
- क्या आम जनता में अभी भी “सरकारी दिखावे” को देखकर तुरंत भरोसा करने की आदत है? क्या अब हमें सिविक एजुकेशन के ज़रिए सतर्कता की ट्रेनिंग देनी चाहिए?
- अगर इन आरोपियों का लिंक किसी बड़े नेटवर्क से निकलता है, तो क्या यह भारत के लिए एक सुरक्षा खतरे का संकेत नहीं है?
- क्या नकली NGO, मानवाधिकार संगठन, या अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के नाम पर चल रहे ऐसे संस्थानों की नियमित सूची और निगरानी होनी चाहिए?
- क्या गृह मंत्रालय या राज्यों की स्पेशल ब्रांच को ऐसे मामलों की प्राथमिक जांच एजेंसी के रूप में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए
- क्या हम सिर्फ पकड़ने तक सीमित रह गए हैं, या अब समय आ गया है कि ऐसे अपराधों के लिए ‘रोकथाम’ (prevention) की सख्त रणनीति बनाई जाए?
कुछ अहम सवाल
- आम लोगों को ऐसी फर्जी संस्थाओं से कैसे सतर्क किया जाए?
- क्या वेबसाइट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया और निगरानी को और सख्त किया जाना चाहिए?
- ऐसी ठगी में शामिल लोगों को क्या अधिकतम सजा मिलनी चाहिए?
- क्या पुलिस और साइबर एजेंसियों को इस तरह के मामलों पर तत्काल कार्रवाई का अधिकार मिलना चाहिए?