UP Electricity News : उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण प्रणाली को निजी हाथों में सौंपे जाने की संभावना पर जोर दिया जा रहा है। एक दिन पहले पावर कॉरपोरेशन की वित्तीय समीक्षा बैठक में इस प्रस्ताव पर सहमति बनी है, जिसके बाद प्रदेश में निजीकरण या पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल लागू करने की तैयारी शुरू हो गई है। इस नई व्यवस्था के तहत सरकार का प्रतिनिधि अध्यक्ष होगा, जबकि प्रबंध निदेशक निजी कंपनियों का होगा। वर्तमान में सभी वितरण कंपनियों के प्रबंध निदेशक आईएएस अधिकारी होते हैं।
घाटे वाले क्षेत्रों में बदलाव
वित्तीय समीक्षा बैठक में यह सहमति बनी कि प्रदेश के कुछ हिस्सों में जहां बिजली कंपनियों को भारी घाटा हो रहा है, वहां पीपीपी मॉडल लागू कर घाटे को कम किया जा सकता है। अधिकारियों का कहना है कि जहां सुधार की संभावना नहीं दिखती और घाटा अधिक है, वहां यह मॉडल लागू किया जाएगा। खासतौर पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल क्षेत्रों में इसे पहले लागू किए जाने की संभावना जताई जा रही है।
कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा
सरकार और पावर कारपोरेशन के अधिकारियों का कहना है कि इस नई व्यवस्था में अधिकारियों और कर्मचारियों के हित सुरक्षित रहेंगे। उनका यह भी कहना है कि यदि यह मॉडल लागू किया जाता है, तो कर्मचारियों को इसके साथ साझेदारी का भी मौका मिलेगा। इसके अलावा, कर्मचारियों के लिए आकर्षक वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) जैसे विकल्प भी पेश किए जाएंगे। सरकार और अधिकारियों का कहना है कि पेंशन और अन्य लाभ में कोई कमी नहीं होगी और संविदा कर्मियों के हितों का भी ध्यान रखा जाएगा।
वित्तीय स्थिति और सरकार की जरूरतें
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान में बिजली खरीदने की लागत और वसूली के बीच भारी अंतर है, जिसके कारण पावर कारपोरेशन और अन्य कंपनियों का घाटा बढ़कर एक लाख 10 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। इस साल पावर कारपोरेशन को राज्य सरकार से 46,130 करोड़ रुपये की सहायता की आवश्यकता पड़ी है, जबकि अगले वर्षों में यह राशि 55 से 65 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। अधिकारियों का मानना है कि पीपीपी मॉडल से ही इस घाटे को नियंत्रित किया जा सकता है।
कर्मचारियों को मिलेंगे विकल्प
अगर राज्य सरकार निजीकरण की दिशा में कदम उठाती है, तो अधिकारियों और कर्मचारियों को कई विकल्प दिए जाएंगे। इनमें एक विकल्प आकर्षक वीआरएस लेने का होगा, वहीं कर्मचारियों को यह भी विकल्प दिया जाएगा कि वे जहां हैं, वहीं बने रहें, या फिर पीपीपी मॉडल पर काम न करने वाली अन्य कंपनियों में चले जाएं।
पूर्वांचल और दक्षिणांचल में पहला कदम
सूत्रों के मुताबिक, अगर यूपी में बिजली वितरण व्यवस्था को निजी क्षेत्र के हाथों में सौंपने का फैसला लिया जाता है, तो यह सबसे पहले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के क्षेत्रों में लागू होगा। इसके बाद पश्चिमांचल, मध्यांचल और केस्को जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इस मॉडल को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
निजीकरण या साझेदारी?
हालांकि सरकार और अधिकारियों का कहना है कि यह निजीकरण नहीं होगा, बल्कि निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी की जाएगी, फिर भी बिजली संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि ऊर्जा विभाग का निजीकरण किसी भी कीमत पर नहीं होने दिया जाएगा। वहीं, अधिकारियों का कहना है कि निजीकरण की बजाय पीपीपी मॉडल का उद्देश्य सिर्फ घाटे को कम करना है और कर्मचारियों के हितों को संरक्षित रखना है।
ये भी पढें : 26 Nov Ka Panchang : आज के पंचांग से जानें शुभ-अशुभ समय
ये भी देखें : BSP supremo Mayawati का बड़ा ऐलान, EVM में धांधली के कारण बसपा नहीं लड़ेगी कोई उपचुनाव